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सोनम वांगचुक की चीनी सामान के खिलाफ देशवासियों से अपील

हम आपको बताएँगे चीन में आगे क्या हो सकता है

चीन पिछले कुछ दिनों से लद्दाख बॉर्डर पर तनाव की स्थिति पैदा कर रहा है। इसी सन्दर्भ में, प्रतिष्ठित मैगसेसे अवार्ड विजेता और शिक्षाविद सोनम वांगचुक का चीनी सामान को बहिष्कार करने का विडियो बहुत लोकप्रिय हो रहा है। कई बॉलीवुड सेलिब्रिटी भी उनका समर्थन कर रहे हैं। हम बताएँगे चीन में आगे क्या हो सकता है, और भारत पर इसका क्या प्रभाव होगा। लेकिन यह जानने से पहले देखते हैं सोनम वांगचुक ने अपने विडियो में क्या कहा।
वे कहते हैं कि चीन पिछले कई हफ्तों से सिर्फ भारत के साथ ही नहीं, बल्कि दक्षिणी चीन सागर में वियतनाम, ताइवान और अब हांगकांग के साथ भी छेड़खानी कर रहा है। चीन यह सब किसी देश के साथ दुश्मनी से ज्यादा अपने अन्दर की समस्याओं को सुलझाने के लिए कर रहा है। आज चीन को सबसे बड़ा डर अपनी 140 करोड़ की जनता से है, जो बंधुआ मजदूर की तरह बिना मानवाधिकारों के चीनी तानाशाह सरकार के लिए काम करते हैं, और उसे धनी बनाते हैं। चीन को डर है कि उनमें एक क्रांति की सी परिस्थिति न बन जाये।

सोनम वांगचुक कहते हैं कि इस बार भारत की बुलेट पॉवर से ज्यादा वॉलेट पॉवर काम आएगी। अगर हम सब बड़े स्तर पर चीनी व्यापार का बायकॉट करते हैं तो उसका चीनी अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ेगा। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो एक तरफ हमारी सेना सीमा पर जंग लड़ रही होगी, और दूसरी तरफ हम और आप चीनी सामान, मोबाइल से लेकर कंप्यूटर, कपड़ों से लेकर खिलौनों तक, को खरीद कर चीन की सेना को पैसा भेज रहे होंगे।

इस सन्दर्भ में, आइये हम आपको बताते हैं चीन में आगे क्या होने वाला है। कोरोना वाइरस मसले पर लापरवाही, कवरअप और अंडर-रिपोर्टिंग के कारण, चीन ने पहले ही दुनिया के विकसित देशों का विश्वास खो दिया है। अमेरिका, जापान और यूरोप के कई देश अपनी ओद्योगिक इकाइयों को चीन से बाहर निकालने की योजना बना रहे हैं। अनेक देशों में चीन के खिलाफ अरबों डॉलर की याचिकाएं दाखिल की गई हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि चीन की अर्थव्यवस्था चरमराने वाली है।

चीन में डेमोक्रेसी नहीं है, वहां कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। पिछले 70 वर्षों में, कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन को एक के बाद एक मानव निर्मित त्रासदियों के हवाले किया है, जैसे महान अकाल, सांस्कृतिक आन्दोलन, तियाननमेन स्क्वायर हत्याकांड, फालुन गोंग दमन, तिब्बत, शिनजियांग और हांगकांग में मानवाधिकारों का हनन, आदि। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अत्याचारों की पराकाष्ठा तब सामने आई जब 2006 में किल्गौर और माटास रिपोर्ट के अनुसार खुलासा हुआ कि चीन में कैद फालुन गोंग व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को उनके अंगों के लिए मारा जा रहा है। इस मामले में जांच के लिए “डॉक्टर्स अगेंस्ट फोर्स्ड ऑर्गन हार्वेस्टिंग” नामक संस्था को 2016 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया। इसके संस्थापक डॉ टॉर्स्टन ट्रे को, नवंबर 2019 में मुंबई में, हार्मनी फाउंडेशन द्वारा आयोजित समारोह में प्रतिष्ठित मदर टेरेसा मेमोरियल अवार्ड प्रदान किया गया।

अब, सबसे महत्वपूर्ण खबर – “Nine commentaries on the communist party” – नामक पुस्तक चीन का भाग्य बदल रही है। 2004 में इपोक टाइम्स, न्यूयॉर्क द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का दमनकारी इतिहास बयान करती है। इस पुस्तक ने एक आन्दोलन का रूप ले लिया है, इसे पढ़ने के बाद बड़ी संख्या में लोग चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरशिप त्याग रहे हैं। पिछले 15 वर्षों में 35 करोड़ से ज्यादा चीनी लोग अनाम रूप से कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरशिप से इस्तीफा दे चुके हैं। इस बारे में और जानकारी के लिए, कृपया देखें https://en.tuidang.org/.

चीन एक तरफ कोरोनोवायरस महामारी के संकट से गुजर रहा है और दुनिया का भरोसा खो बैठा है। तो दूसरी तरफ, “पार्टी छोड़ो आन्दोलन” चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को जड़ से खोखला कर रहा है। जिस तरह सोवियत कम्युनिस्ट सम्राज्य रातों-रात धराशाई हो गया था, उसी तरह चीनी कम्युनिस्ट शासन के भी गिनती के दिन बचे हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के समापन की संभावना भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए खासा महत्त्व रखती है। अब तक आप समझ ही गए होंगे कि चीनी सामान के बहिष्कार का चीन पर क्या असर होने वाला है। हमें सोनम वांगचुक की अपील को इस सन्दर्भ में देखना चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए।

सुरेन राव द्वारा लिखित लेख
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