मध्य प्रदेश

मोदी युग में राम-रीति से भारत का नवनिर्माण

राम-रीति से बन रहा नया भारत

विष्णुदत्त शर्मा

बचपन से ही घर के बड़े-बुजुर्गों से प्रभु श्रीराम लला की कीर्ति, शौर्य और प्रभुता की बातें सुनता रहता था। युवा अवस्था के प्रारंभ में बताया गया कि आक्रांताओं ने अयोध्या में आक्रमण करके भगवान श्रीराम जन्मभूमि स्थान पर बने मंदिर को बर्बरतापूर्वक तोड़कर मस्जिद का विवादित ढांचा बनाया गया था। यह बात सुनने के बाद से ही मन उद्वलित रहने लगा कि हमारे आराध्य और रोम-रोम में बसने वाले भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर हुआ आक्रमण सनातन पर और हमारी आस्था पर आक्रमण था। इसके बाद से ही राष्ट्रीयता की विचारधारा से प्रेरित होकर कॉलेज में पहुंचते ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अध्ययन के साथ ही श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा पूरी तरह से समझा। उसके उपरांत वर्ष 1992 में एबीवीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल होने कानपुर पहुंचा तो मुझे भी कारसेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वर्ष 1992 में ही 6 दिसंबर को कार सेवकों द्वारा श्रीराम जन्मस्थान पर बने विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। उन दिनों राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं को यह सलाह दी जाती थी कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है जहां ऐसे सांप्रदायिक व अनावश्यक मुद्दों का कोई स्थान नहीं है। स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी के अतिरिक्त देश के सभी राजनीतिक दलों के लिए राम मंदिर आंदोलन एक सांप्रदायिक मुद्दे से अधिक और कुछ न था।

युवा अवस्था में यह विचार मेरे मन मस्तिष्क में कौंधता रहता था कि जब भारत, भगवान श्रीराम की भूमि है तो यहां भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर आक्रांताओं द्वारा मंदिर तोड़कर बनाए गए विवादित ढांचे के स्थान पर रामलला के लिए भव्य मंदिर निर्माण की परिकल्पना सांप्रदायिक कैसे हो सकती है ? तत्समय एक बड़ा प्रभावशाली एवं विशिष्ट वर्ग भी सेकुलरिज्म की चादर में लिपटे हुए इन्हीं कुतर्कों को धार देता रहता था। ऐसी स्थिति में कभी-कभी लगता था कि अयोध्या में भव्य श्रीरामलला मंदिर का निर्माण एक दिवास्वप्न ही है, परंतु यह भारत का सौभाग्य है कि देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा एक ऐसा राष्ट्र निष्ठ संगठन है, जिसने श्रीरामलला के मंदिर निर्माण की आस कभी नहीं त्यागी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश में यह भरोसा जगाये रखा कि एक दिन राम मंदिर अवश्य बनेगा। राम जन्मभूमि का चरणबद्ध आंदोलन और विश्वास बनाए रखने के लिए रचे गए नारे इस प्रतिबद्धता के साक्षी रहे हैं। संघ ने देश की चेतना को जागृत रखते हुए श्रीराम मंदिर निर्माण के संकल्प को हर नागरिक का संकल्प बना दिया। संघ से प्रेरणा लेने वाले अनेक संगठनों ने उस चेतना को प्रखर बनाये रखने में अपना गिलहरी रूपी योगदान देने के लिए कृतसंकल्पित रहे। जनसंघ के समय से ही श्रीराम मंदिर का निर्माण अतिमहत्वपूर्ण मुद्दा था और भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस से ही यह प्राथमिकता के शिखर पर पहुंच गया। फलस्वरूप आज अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण पूर्ण हो चुका है और भगवान श्रीराम अब सनातनियों द्वारा निर्मित भव्य -दिव्य मंदिर में विराजने वाले हैं।

वास्तव में किसी देश की चेतना ही उसके भविष्य मार्ग को सुनिश्चित करती है। विशेषकर भारत के संदर्भ में यह बहुत महत्वपूर्ण है कि उसकी अस्मिता पर जब-जब हमले हुए तो उसने अपनी चेतना को जीवंत रखा।

कवि इकबाल ने कहा था कि-
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा।

हजार साल तक बर्बर हमलों के बावजूद हमारे पुरखों ने देश की चेतना को जागृत रखा। हम बाह्य युद्ध हार गये, लेकिन मन का युद्ध जीतते रहे। दुर्भाग्य से 1947 के बाद स्वतंत्र भारत में ऐसी राजनीतिक धारा केंद्र में रही, जिसने देश के मन को हराने के कुत्सित प्रयास किए। उसने आम हिन्दू जनमानस को सदा इसके लिए तैयार किया कि वह अपने मूल्यों को छोड़ दे। अटल सरकार और विशेषकर 2014 में राजनीतिक धारा का केंद्र बदला तभी हमारे भविष्य की राह उज्ज्वल हुई। विश्व में भारत अपनी प्राचीन सनातन पहचान के साथ नये सिरे से उभरने लगा और एक नया भारत आकार लेने लगा।

2014 से पहले अयोध्या में श्रीराम मंदिर की वकालत करते हुए हम सब यह कल्पना भी नहीं कर पाते थे कि इसके बनने के समय भारत की स्थिति क्या होगी? यह मुद्दा हिन्दू अस्मिता के प्रश्न से जुड़ा था, लेकिन अब मंदिर निर्मित होते-होते यह स्पष्ट हो गया है कि यह केवल अस्मिता का विषय ही नहीं, यह भारत के भविष्य और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने का विषय था। आज यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर नहीं बन रहा है, इसके साथ-साथ एक नया भारत भी बन रहा है जो विश्व का नेतृत्व करने के लिए संकल्पित है।
यह नया भारत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई में बहुलता, विविधता और समावेशिकता का सम्मान करने वाला एकमात्र देश है। यह भारत अपनी पुरातन सांस्कृतिक पहचान को आधुनिक कलेवर में भी पोषित और संर्वधित करने की क्षमता रखता है। यह भारत अपनी धरोहर को वापस पाने के लिए सदियों तक प्रतीक्षा कर सकता है और अहिंसा के रास्ते पर चलकर उसे प्राप्त भी कर सकता है। यह नया भारत युद्ध एवं परमाणु बम के उपयोग के बिना ही अपनी विधि-व्यवस्था के माध्यम से सबसे पुरानी समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखता है। उसे कोई बाहरी दखल बर्दाश्त नहीं है। यह नया भारत स्वदेशी चंद्रयान का सफल परीक्षण कर सकता है तो यह अपने आराध्य श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का पुनः निर्माण कर सदियों की बर्बर गुलामी के चिह्न को भी मिटा सकता है।

प्रश्न यह है कि भारत सदियों से दिव्य शक्तियों और असीम क्षमताओं वाला देश रहा है तो फिर इसकी अपनी महिमा, गरिमा क्यां धुमिल हो गई थी? इसका एक ही उत्तर है, देश की चैतन्यता पर प्रहार। देश की चेतना ऐसी बना दी गई थी कि राम मंदिर की बात करना सांप्रदायिक और मुस्लिम तुष्टीकरण करना सेकुलरिज्म था। भारत का गौरव महिमा गान पिछड़ापन था और विदेशों का गुणगान करना बुद्धिजीविता थी। अपने संविधान पर अविश्वास करते हुए, अपने ही मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र की विदेशी मध्यस्तता से हल कराने की कोशिश की जाती थी। इन सब बातों पर राष्ट्रवादियों के अलावा शेष समाज मौन ही रहता था, क्योंकि हमारी चेतना का स्तर इतना गिरा दिया गया था कि हम इन सब मुद्दों के प्रति उदासीन रहने के अभ्यस्त हो गए थे।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में आज भारत के लोगों में राष्ट्रबोध के साथ सनातन के प्रति सकारात्मक बदलाव आया है। हमारी स्व-चेतना का स्तर शिखर की ओर अग्रसर है। भाजपा सहित अनेक राष्ट्रवादी संगठनों के प्रयासों से राष्ट्रीयता का सर्वांग जागरण हुआ है। भारतीय जनमानस अपनी आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहरों, अपने मूल्यों एवं अपनी मान्यताओं के प्रति इतना अधिक सजग हो गया है कि उसके मुद्दों को लटकाने के लिए अब अदालतें भी तैयार नहीं है।

निःसंदेह, भारत की इस चैतन्यता का केंद्र बिंदु प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्वकाल हैं। साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश की जनता में जो विश्वास जगाया है, वह अतुलनीय और अकथनीय है। उनके नेतृत्व में भारत की क्षमता, शक्ति, छवि और नियति सब कुछ परिवर्तित हुई है। जब नेतृत्व स्वयं अपने आचरण से देश की संस्कृति, आध्यात्म, मूल्यों, परंपराओं और धरोहरों के प्रति अगाध प्रेम और प्रतिबद्धता प्रदर्शित करता है तो जनता की चेतना का जागरण होना स्वाभाविक है। डरा हुआ और तुष्टीकरण से शासन चलाने वाला अक्षम नेतृत्व देश की चेतना को कमजोर ही करता है। सबका साथ, सबका विश्वास का संकल्प लेकर मजबूत कदमों के साथ आगे बढ़ने वाला नेतृत्व राष्ट्र को परम-वैभव की ओर उन्मुख करता है। यही राम की रीति-नीति भी है। आज जब विश्व भर में अशांति है, एक देश दूसरे देश का दमन कर रहा है, तब भारत ऐतिहासिक नवनिर्माण कर रहा है और संकल्पित, विकसित और अखण्ड भारत की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

लेखक – भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद हैं

advertisement
advertisement
advertisement
advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button