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इस तरह ऑपरेशन रूम से आतंकियों के ठिकाने तक ऑपरेशन को अंजाम देते हैं पैरा कमांडो

सार
ऑपरेशन रूम में बिना वक्त गवाए दो टीमों में जवान बंट जाते हैं। टारगेट हाउस के ऊपर हर संदिग्ध हरकत पर नजर रखने के लिए ड्रोन भी उड़ाया जाता है। ऑपरेशन के दौरान एक-दूसरे से बात करने के लिए सिगनल का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कॉल सेंस कहा जाता है। यह ऐसे सिगनल होते हैं जिससे दुश्मन को न लगे कि कोई और उसकी ओर बढ़ रहा है। 

विस्तार
कश्मीर घाटी में आतंकवादियों के खिलाफ विशेष ऑपरेशनों के लिए भारतीय सेना के पैरा कमांडो हमेशा से एक अहम भूमिका निभाते आए हैं और मौजूदा दौर में निभा भी रहे हैं। आतंक विरोधी ऑपरेशनों में इन कमांडो का प्रयास होता है कि ऑपरेशन के दौरान किसी नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।

अमर उजाला की टीम ने भी उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा के निकट एक अज्ञात इलाके में सेना की पैरा यूनिट के साथ कुछ समय बिताया और इस बात का अनुभव लिया कि किस तरह से एक पेशेवर तरीके से पैरा यूनिट के जवान ऑपरेशन को अंजाम देते हैं। किसी भी जगह आतंकियों के छिपे होने का इनपुट मिलने पर सबसे पहले पैरा की कोर ऑपरेशन टीम को एक ब्रीफिंग दी जाती है, जिसमें इलाके की ड्रोन इमेज के सहारे जवानों को ऑपरेशन को अंजाम देने के बारे में समझाया जाता है और एक योजना तैयार की जाती है।

ऑपरेशन रूम में बिना वक्त गवाए दो टीमों में जवान बंट जाते हैं। एक टीम उस मकान व जगह के करीब 200-300 मीटर दूर इलाके के आस-पास आउटर कोर्डन स्थापित करती है जहां आतंकी के छुपे होने की सूचना मिलती है। दूसरी कोर टीम आगे बढ़ने से पहले लाउडस्पीकर से एलान कर आतंकी को सरेंडर करने को कहती है। इसके बाद टीम धीरे-धीरे टारगेट की ओर बढ़ती है और इस दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि जबतक अंदर से फायर न आए तब तक कोई यहां से फायर नहीं खोलता।

एक-दूसरे से बात करने के लिए सिगनल का इस्तेमाल
इस दौरान टारगेट हाउस के ऊपर हर संदिग्ध हरकत पर नजर रखने के लिए ड्रोन भी उड़ाया जाता है। इसके बाद कोर टीम 5-6 बड़ी पेयर हिट्स में आगे बढ़ती है, जोकि रूम इंटरवेंशन के लिए एक्सपर्ट होते हैं। एक-एक कर पूरी मुस्तैदी से रूम इंटरवेंशन किया जाता है और हर कमरे को सैनिटाइज करने के बाद इंजीनियर टीम को अंदर भेजा जाता है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कोई आतंकी वहां कोई आईईडी या अन्य विस्फोटक छोड़कर न भगा हो। ऑपरेशन के दौरान एक-दूसरे से बात करने के लिए सिगनल का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कॉल सेंस कहा जाता है। यह ऐसे सिगनल होते हैं जिससे दुश्मन को न लगे कि कोई और उसकी ओर बढ़ रहा है।

जंगल और रिहायशी इलाके के लिए अलग-अलग ट्रेनिंग
पैरा यूनिट के कंपनी कमांडर मेजर मलकीत ने बताया कि पैरा फोर्स एक वॉलेंटियरी फोर्स है। इसमें चाहे जवान हो या अधिकारी अपनी मर्जी से इसमें शामिल होते हैं और एक पैरा यूनिट का हिस्सा बनने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत कर अच्छे परिणाम देने की जरूरत होती है। ट्रेनिंग में सबसे पहले एयरबोर्न टास्क सिखाया जाता है जिसमें जम्प ट्रेनिंग दी जाती है। एक स्टैटिक लाइन जम्प जिसमें पैराशूट मैकेनिकल तरीके से खुलते हैं और दूसरा फ्री-फाल पैराशूट होते हैं जिनका कूदने का ऑलटिटयूड 12 हजार फीट या उससे अधिक का होता है। मेजर ने बताया कि एलओसी के ऑपरेशन अलग तरह के होते हैं जहां जंगल क्षेत्र में आतंकी घुसपैठ जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इसलिए जंगल ट्रेनिंग कुछ और होती है। दूसरा होता है रिहायशी इलाका, उनके लिए अलग प्रकार की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है।

यूनिट में चलता रहता है अभ्यास का दौर
पैरा यूनिट के कमांडिंग अफसर कर्नल करण भाटिया ने बताया कि पैराशूट यूनिट एक स्पेशल यूनिट होती है जिसे विशेष ऑपरेशनों को अंजाम देने में इस्तेमाल किया जाता है। जवानों के पास विशेष हथियार होते हैं और इन्हें हर उस जगह विशेष ऑपरेशनों के लिए तैनात किया जाता है जहां-जहां भारतीय सेना तैनात है। ऑपरेशन न होने के दौरान यूनिट में अभ्यास भी चलाया जाता है। जिसमें पहला विकल्प अगर फेल हुआ तो दूसरा क्या होगा उस पर चर्चा करते रहते हैं। इस अभ्यास को ‘अगर-मगर का अभ्यास’ कहा जाता है।

इन हथियारों का करते हैं इस्तेमाल
पैरा यूनिट के जवान इजराइल मेड टैवोर-21 असाल्ट राइफल (करीब 550 मीटर रेंज), ऑस्ट्रिया मेड गलॉक-17 पिस्तौल, इजराइल मेड ऊजी एसएमजी (करीब 200 मीटर रेंज), नाइट विजन डिवाइस, लेजर (हथियार के ऊपर लगा हुआ), बॉडी कैमरा, सोल्जर नाइफ बैलिस्टिक शील्ड्स, नी/एल्बो गार्ड, सर्च लाइट आदि का इस्तेमाल करते हैं।

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