मां दंतेश्वरी का मंदिर डेढ़ साल से लॉक, पहले दान पेटी से सालाना एक करोड़ निकलते थे, वो घटकर 4 से 5 लाख तक पहुुंच गए, दुकानदारों के सामने भी रोजी-रोटी की समस्या
दंतेवाड़ा जिले में अब कोरोना संक्रमण के मामले कम आ रहे हैं। अब रोजाना औसतन 30 से 35 लोग ही कोरोना संक्रमित मरीज मिल रहे हैं। पॉजिटिव दर कम होते ही कुछ पाबंदियों के साथ जिला पूरी तरह से अनलॉक हो गया है। लेकिन बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का मंदिर अब भी लॉक है। मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर मुख्य पट सब कुछ पिछले डेढ़ साल से बंद हैं। कोरोना की वजह से मंदिर में भक्तों के प्रवेश पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ है। यहां तक की पहले दान पेटी से जहां करोड़ों निकलते थे, वह भी घटकर सिर्फ 4 से 5 लाख रुपए तक पहुंच गई है। इतना ही नहीं फागुन मड़ई पर भी कोरोना के चलते बड़ा असर पड़ा है।
हालांकि, मां दंतेश्वरी की पूजा अर्चना में किसी तरह से कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है।वहीं मंदिर लॉक रहने से अब भक्तों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है। जबकि प्रसाद बेचने वाले दुकानदारों के सामने भी रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है। इधर, दंतेवाड़ा एसडीम अबिनाश मिश्रा का कहना है कि मंदिर खोलने के लिए सरकार से अब तक किसी तरह का कोई आदेश नहीं आया है।
800 सालों में पहली बार नवरात्र में बंद था आराध्य देवी का मंदिर
कोरोना की वजह से मां दंतेश्वरी का मंदिर लगभग डेढ़ साल से बंद है। मंदिर के प्रमुख पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के अनुसार 800 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है कि शारदीय और 2 चैत्र नवरात्र में भी मंदिर भक्तों के लिए बंद था। प्रति वर्ष नवरात्र में मां दंतेश्वरी के मंदिर में हजारों श्रद्धालु दर्शन करने के लिए पहुंचते थे। लेकिन पिछले डेढ़ सालों में कोरोना की वजह से 3 नवरात्र में मंदिर का पट भक्तों के लिए पूरी तरह से बंद था। हालांकि भक्त मन्दिर के प्रवेश द्वार पर ही मत्था टेक,नारियल चढ़ा चले जाते थे। वर्तमान में दंतेवाड़ा जिला अनलॉक है लेकिन भक्तों के लिए मंदिर अब भी लॉक है। सुबह और शाम के वक्त मंदिर के पुजारी और सेवादार कोरोना के नियमों का पालन करते हुए मां दंतेश्वरी की पूजा अर्चना करते हैं।
मंदिर बंद होने के कारण यहां की प्रसाद दुकानें भी बंद हैं, इन्हें अब भी दुकान खोलने की भी अनुमति नहीं है। जिसके कारण दुकानदार काफी परेशान हैं।
30 सालों में पहली बार दुकानदारों के सामने गहराया रोजी रोटी का संकट
मंदिर के बंद होने से मंदिर के बाहर स्थित 6 दुकानों के दुकानदारों के सामने भी अब रोजी रोटी का संकट गहराने लगा है। दुकान संचालक खुमेंद्र, सचिन, अखिलेश और संतोष मिश्रा ने बताया कि मंदिर में प्रसाद की दुकान लगाते हुए उन्हें तकरीबन 30 साल से ज्यादा का समय हो गया है। सामान्य दिनों में मंदिर भक्तों से गुलजार रहता था, जिससे उनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। लेकिन पिछले डेढ़ साल में उनके सामने रोजी रोटी का संकट गहराने लगा है। इन्होंने कहा कि हम शराब नहीं बल्कि प्रसाद बेचते हैं। शराब की दुकान खुली है, लेकिन प्रसाद की दुकान खोलने की इजाजत सरकार ने क्यों नहीं दी? यह समझ से परे है।
सामान्य दिनों में हर दूसरे महीने खुलती थी दान पेटी,12 से 20 लाख रुपए तक निकलती थी राशि
मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रमुख पुजारी हरेंद्र नाथ जिया ने बताया कि कोरोना महामारी से पहले सामान्य दिनों में हर दूसरे महीने मंदिर की दान पेटी खोली जाती थी। जिसमें से 12 लाख रुपए से लेकर 20 लाख रुपए तक कि दान की राशि निकलती थी। दान पेटी से ही सालाना एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि मन्दिर को प्राप्त होते थे। साथ ही 5 से 10 तोला सोना और कई किलो चांदी भी दान पेटी से निकलता था। लेकिन कोरोना काल में मंदिर बन्द होने की वजह से दान की राशि में भी गिरावट आई है। सालभर से दान पेटी नहीं खुली है। हालांकि 4 से 5 लाख रुपए भक्तों ने ऑनलाइन माध्यम से चढ़ाए हैं।
फागुन मड़ई पर भी पड़ा था बड़ा असर
बस्तर में फागुन मड़ई का अपना एक अलग ही महत्व है। यह मड़ई 11 दिनों तक चलती है। जिसमें पूरे बस्तर संभाग सहित पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी पुजारी और सेवादार देव विग्रह लेकर मां दंतेश्वरी के मंदिर पहुंचते हैं। लेकिन इस वर्ष फागुन मड़ई में भी कोरोना का ग्रहण लगा। जहां 800 पुजारियों और सेवादार मंदिर पहुंचते थे, वहीं इस वर्ष केवल 300 से 400 ही पहुंच पाए थे। इसके अलावा मंदिर के पुजारियों के द्वारा ही, इस मड़ई की पूरी परंपरा को निभाया गया था। फागुन मड़ई में शामिल होने पहुंचे देवी-देवताओं को 11 दिनों में विदाई देने की परम्परा रहती है, लेकिन इस वर्ष केवल 3-4 दिनों में ही विदाई दी गई थी। पुजारियों के अनुसार कोरोना की वजह से वर्षों पुरानी परंपरा टूटी है।