छत्तीसगढ़राजनांदगांव जिला

गर्भ में नहीं सुनाई दे रही थी धड़कन; परिजन बोले- डॉक्टर भाई-बहन ने उम्मीद नहीं छोड़ी, भरोसा दिलाया और नवजात को मिला नया जीवन

ठाकुरटोला निवासी ज्योति ताम्रकार को परिजन ने पहली डिलीवरी के लिए मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में भर्ती कराया था। जांच के बाद डॉक्टरों ने यह कहकर रेफर कर दिया कि गर्भ में बच्चा मृत है, उसकी धड़कन सुनाई नहीं दे रही। यह सुनकर परिजन हड़बड़ा गए। आर्थिक रूप से कमजोर परिजनों को किसी ने स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुरभि मोहबे से मिलने की सलाह दी।

डॉ.सुरभि ने जांच की तो उन्हें भी लगा कि बच्चा मृत हो गया है पर महिला को बचाने के लिए ऑपरेशन कर बच्चे को गर्भ से बाहर निकाला। बच्चा मृत लग रहा था पर डॉ.सुरभि और इनके भाई डॉ.सौरभ मोहबे ने तय किया कि बच्चे को वेंटिलेटर में रखकर कृत्रिम सांस दी जाए।

6 दिन तक वेंटिलेटर पर रखने के बाद सातवें दिन बच्चे की धड़कन चलने लगी। तेजी के साथ स्वास्थ्य में सुधार आ गया। रोते-बिलखते परिजनों के चेहरे खिल उठे। डॉक्टर्स का कहना है कि यह चमत्कार से कम नहीं है।

मेडिकल साइंस का चमत्कार: स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ.सुरभि व डॉ.सौरभ ने किया इलाज

डॉ. सुरभि और डॉ.सौरभ ने बताया कि महिला का ऑपरेशन करने के बाद जब बच्चे को बाहर निकाला गया तो हार्ट बीट नहीं चल रही थी पर जांच करने पर उम्मीद नजर आई। बताया कि परिजन इतने निराश हो चुके थे कि बच्चे को मृत समझकर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल दान करने का मन बना चुके थे।

परिजनों की स्वीकृति लेने के बाद बच्चे को एक विशेष मशीन “ सर्वो कंट्रोल हाइपोथर्मिया “ में रखा गया। मशीन के द्वारा बच्चे के शरीर का तापमान कम किया गया। इस इलाज के बाद भी बच्चे की आंख की पुतलियां फैली हुई थीं। साथ ही ब्रेन वेव्स (ईईजी) में खराबी दिखाई पड़ रही थी। निष्कर्ष के तौर पर यही बात सामने आ रही थी कि बच्चा मृत अवस्था में है।

जब सारी बातें बच्चे के माता-पिता सहित परिजनों को बताई गई तो उन्होंने उसे मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल को डोनेट करने का मन बना लिया। दोनों डॉक्टर ने निश्चय किया कि क्यों न बच्चे को वेंटिलेटर पर रखकर कृत्रिम सांस दी जाए। छह दिन तक लगातार वेंटिलेटर पर रखने के बाद सातवें दिन बच्चे की स्थिति बेहतर होना शुरू हुई और उसे जीवन मिल पाया।

आज पूरे एक माह बाद ताम्रकार परिवार अपनी पहली संतान को सकुशल लेकर घर लौटे। परिजनों का कहना है कि डॉक्टर भाई और बहन ने उम्मीद नहीं छोड़ी। लगातार हिम्मत बांधते रहे। यही वजह है कि बच्चे की जान बच पाई।

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