राजनांदगांव: सुख यदि डिस्टर्ब करने लगे तो समझ लो कंफर्टजोन में पहुंच गए- सम्यक रतन सागर जी
परमात्मा से ऐसे संबंध जोड़े कि परमात्म प्राप्त कर लें – साध्वी प्रार्थना श्रीजी
राजनांदगांव आठ जनवरी। जैन मुनि सम्यक रतन सागर जी ने आज यहां कहा कि सुख सुविधाएं तो बहुत है किंतु बंधन मुक्त नहीं है और बंधन मुक्त होने के लिए हमें स्वतंत्र उड़ान की आवश्यकता है। स्वतंत्र उड़ान तभी हो सकता है जब हम अपने को धर्म से जोड़ दें और ऐसा पराक्रम करें कि हम आत्मिक सुख की प्राप्ति कर ले। मुनि श्री ने कहा कि यदि भौतिक सुख हमें डिस्टर्ब करने लगे तो समझ लो कि हम कंफर्टजोन में पहुंच गए हैं और अब हमें आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए अग्रसर होना चाहिए।
जैन मुनि ने आज जैन बगीचे में कहा कि जीवन रूपी तोता छोटे पिंजरे से बड़े पिंजरे में जाना चाहता है और बड़े पिंजरे से आकाश में खुला उड़ान भरना चाहता है। उन्होंने कहा कि छोटा पिंजरा यानि अभाव की जिंदगी और बड़ा पिंजरा यानि भौतिक सुख सुविधाओं से संपन्न जीवन तथा खुला आसमान अर्थात धर्म से जुड़ा जीवन और आत्मिक सुख की प्राप्ति है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति किस पिंजरे में कैद होना चाहता है या खुला आकाश पसंद करता है यह उसके कर्म पर निर्भर करता है। छोटा पिंजरा वाला बड़े पिंजरे में जाना चाहता है और बड़ा पिंजरा वाला खुले आकाश में उड़ना चाहता है। उन्होंने कहा कि भौतिक सुख सुविधाओं के रहते भी यदि व्यक्ति को सुख डिस्टर्ब करते हैं तो समझिए कि वह कंफर्ट जोन में पहुंच गया है और उसे आत्मिक सुख की प्राप्ति के लिए पराक्रम शुरू कर देना चाहिए। संयम जीवन में दुख तो है और सुख भी है।जब संयमी इन दोनों को पार कर लेता है तो वह आत्मिक सुख को प्राप्त करता है।
मुनि श्री ने कहा कि मिथ्या दर्शन सभी पापों की उत्पत्ति का कारण है । इसका मतलब यह है कि किसीके वास्तविक स्वरूप का दर्शन ना कर हम उसके मिथ्या स्वरूप का दर्शन करते हैं। उन्होंने कहा कि संयम जीवन में दुख है किंतु हम इसे पार कर ले तो उसके बाद जो सुख मिलता है वह सुख, साधन संपन्न सुविधाओं से मिलने वाले सुख से कहीं अधिक होता है। उन्होंने कहा कि पंछी को स्वतंत्र उड़ान के लिए दो चीजें आवश्यक है पहला दृष्टि और दूसरा पंख। उन्होंने कहा कि दृष्टि हो तो पंख बिना उड़ा नहीं जा सकता और पंख है तो दृष्टि बिना लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि आपके पास शक्ति है तो दृष्टि भी होनी चाहिए। गुरु भगवंत शक्ति नहीं देते बल्कि दृष्टि देते हैं । युद्ध शक्ति से नहीं बल्कि दृष्टि से लड़ा जाता है। यदि व्यक्ति के पास दृष्टि है तभी वह विजेता बन सकता है। उन्होंने कहा कि धर्म को समझने का प्रयास करें।
इससे पूर्व साध्वी प्रार्थना श्रीजी ने कहा कि परमात्मा से ऐसे संबंध जोड़े कि हम परमात्म प्राप्त कर लें। उन्होंने कहा कि इसके लिए प्रयास करना होगा और पुरुषार्थ से हमें धर्म की राह में बढ़ना होगा , तभी हम परमात्मा और आगे चलकर परमात्म अवस्था को प्राप्त कर सकेंगे।