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खरगोन उपद्रव: जब धार्मिक उन्माद को दोस्ती ने दी मात और पेश की इंसानियत की मिसाल

खरगोन में उपद्रव वाले दिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने धर्म की जगह दोस्ती को चुना और इंसानियत की मिसाल पेश की।

अंकिता विश्वकर्मा

खरगोन में रामनवमी के दिन हुए उपद्रव में हिन्दु और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोगों को उपद्रवियों की हिंसा का सामना करना पड़ा। लेकिन मुश्किल वक्त में अपने ही अपनों के काम आते हैं। मजहब किसी को बांट नहीं सकता। मुश्किल के वक्त में जब एक तरफ लोग हिन्दु-मुस्लिम में बंट कर दंगा कर रहे थे, तो वहीं कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने धर्म से पहले इंसानियत को रखा और खुद की परवाह न करते हुए ऐसे लोगों की मदद के लिए सामने आए। आइए खरगोन उपद्रव में पीड़ित कुछ ऐसे ही लोगों की आपबीती सुनाते हैं। 

सुमित और सादिक की दोस्ती
खरगोन जिले के संजय नगर में रहने वाले सुमित चंदोक के घर से महज 500 मीटर दूर उनके दोस्त और सहकर्मी सादिक खान का घर है। उपद्रव वाले दिन शाम के करीब 7 बजे सादिक ने सुमित को फोन किया और रोते हुए मदद की गुहार लगाई। सादिक ने सुमित को बताया कि भीड़ उनके घर पर पथराव कर रही है। ये सुनते ही सुमित ने बिना देर किए अपने भाई अमित को सादिक के घर के लिए रवाना किया और उसे मदद देने के लिए कहा। जब तक अमित सादिक के घर पहुंचा। उपद्रवी उनके घर को जला चुके थे। अमित ने सादिक के बच्चों को संजय नगर में उनके रिश्तेदारों के यहां सुरक्षित पहुंचाया। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान अमित को भी उपद्रवियों का सामना करना पड़ा। सुमित ने बताया कि वे ऊतक विकार से पीड़ित होने के चलते खुद दोस्त की मदद के लिए नहीं पहुंच सके लिहाजा उन्होंने अपने भाई को भेजा। सुमित ने कहा कि अमित को भेजने से पहले दो मिनट के लिए भी नहीं सोचा। क्योंकि जब मेरा नेक्रोसिस का ऑपरेशन था तब सादिक मेरे साथ खड़ा था। ऐसे में जरूरत के वक्त उनकी मदद करना हमारा फर्ज था। 

सादिक और सुमित एक निजी अस्पताल में साथ काम करते हैं। सादिक खान का संयुक्त परिवार है। उनके घर में करीब 14 लोग हैं। खरगोन उपद्रव में सादिक बेघर हो गए हैं और उनकी सारी संपत्ति आगजनी में जल चुकी है। सादिक के भाई दिलावर ने घटना वाले दिन को याद करते हुए बताया कि पथराव शुरू हुआ और मिनटों के भीतर, वे हमारे घर के बाहर थे। उन्होंने दीवार पर लिखे नाम को पढ़ा और हमने भीड़ को यह कहते हुए सुना कि, ‘ये खान का घर है, फोड़ो’। दिलावर ने बताया कि हमारे पास कुछ भी नहीं बचा सिवाय उस मोटर साइकिल के जिसे अमित ने निकाला था। 

बताया जाता है कि झड़प की शुरुआत तालाब चौक मस्जिद के पास हुईं और कुछ ही मिनटों में संजय नगर, काजीपुरा, तवड़ी मोहल्ला, आनंद नगर, भाऊसर मोहल्ला और खसखसवाड़ी सहित आसपास के इलाकों की कॉलोनियों में फैल गई। इस दौरान मुसलमानों और हिंदुओं की मिश्रित आबादी वाले संजय नगर के निवासियों ने सबसे खराब स्थिति का सामना किया।

सुमन प्रजापति ने निभाया पड़ोसी धर्म
सादिक के पड़ोस में रहने वाली नूरजहाँ (55 वर्षीय) ने उपद्रव वाले दिन को याद करते हुए बताया कि उस दिन वे और उनकी बहू नजमा बी घर में अकेली थी। जब दंगाइयों ने उनके दरवाजे पर पीटना शुरू किया, तो उन्हें अंदर आने से रोकने के लिए उन्होंने दरवाजे के आगे सामान लगा दिया ताकि दरवाजा टूट न सके। नूरजहां ने कहा कि रात के वक्त हमें घर में अकेले रहने में डर लगा रहा था, ऐसे में हमारी पड़ोसी और अच्छी सहेली सुमन प्रजापति घर आई और हमें अपने घर चलने के लिए कहा। वहीं, सुमन प्रजापति ने कहा कि उन्हें अकेला छोड़ना जोखिम भरा था, इसलिए मैंने उन्हें अपने घर बुलाया। हम पड़ोसी हैं और हमेशा एक-दूसरे के लिए खड़े रहे हैं। हमारी दोस्ती धर्म से परे है।

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