छत्तीसगढ़

सल्फी पेड़ में फंगस ने छीना आदिवासियों की आय का साधन, एक्सपर्ट ने बताए उपाय

बस्तर की आदिवासी संस्कृति और परंपरा में सल्फी का पेड़ परिवार के सदस्य की तरह होता है. आदिवासी सल्फी पेड़ का लालन पालन बच्चों की तरह करते हैं. आदिवासी संस्कृति में सल्फी पेड़ पूजनीय है. सल्फी पेड़ से निकलने वाले पेय रस को बस्तर बियर के नाम से जाना जाता है. आदिवासी ग्रामीणों के घरों में सल्फी का रस और पेड़ मिलना आम बात है. सल्फी पेय रस यानी बस्तर बियर को बेचकर आदिवासी अच्छी खासी कमाई करते हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से आदिवासियों की चिंता बढ़ गई है और चिंता का कारण फिजेरियम ऑक्सीएक्सोरम नामक फंगस है.

सल्फी पेड़ में लगनेवाले फंगस ने बढ़ाई आदिवासियों की चिंता

फिजेरियम ऑक्सीएक्सोरम फंगस सल्फी पेड़ की जड़ को भारी नुकसान पहुंचा रहा है. फंगस लगने की वजह से धीरे धीरे सल्फी के पेड़ खत्म होते जा रहे हैं. पेड़ को बचाने के लिए पौधा रोग वैज्ञानिकों ने तोड़ निकाला है, लेकिन जानकारी के अभाव में अब ग्रामीण पौधा लगाना छोड़ रहे हैं. पेड़ को बचाने के लिए कृषि वैज्ञानिक लंबे समय से शोध कर रहे थे. लंबे शोध के बाद पेड़ में लगने वाले फंगस की समस्या का निदान भी वैज्ञानिकों ने निकाला, लेकिन ग्रामीण फंगस से बचाव का कोई उपाय नहीं कर रहे हैं.

मुख्य कारण अधिकतर ग्रामीणों को उपाय की जानकारी नहीं होना है. ग्रामीणों का कहना है कि फंगस ने सल्फी पेड़ के रस से होने वाली आय को छीन लिया है और अब हताश होकर सल्फी के पौधे ही लगाना छोड़ रहे हैं. ग्रामीण अंचलों में आज से 10 साल पहले हर घर के बाड़ी में सल्फी पेड़ नजर आता था. सल्फी के पेड़ को रस निकलने तक बड़े होने में 15 से 20 साल लगता है और एक पेड़ लगातार 15 साल तक रस देता है. पेड़ के पेय रस यानी बस्तर से आदिवासियों को अच्छी-खासी आमदनी भी होती है. बस्तर बियर को ओड़िशा और दूसरे राज्यों से आने वाले पर्यटक भी बड़े चाव से पीते हैं, लेकिन फंगस की वजह से पुराने सल्फी पेड़ असमय सूख रहे हैं और अब धीरे-धीरे ग्रामीण भी पौधे लगाना छोड़ रहे हैं.

पेड़ के जड़ किनारे गड्ढे खोदकर छिड़कें एंटीफंगल केमिकल 

पौधा रोग वैज्ञानिक डॉक्टर आर आर भंवर ने सल्फी पेड़ को मरने से बचाने के कुछ उपाय बताए हैं. पेड़ के जड़ किनारे गड्ढे खोदकर डाईकोडर्मा और डेनोमाइल नामक एंटीफंगल केमिकल छिड़कने से फंगस नष्ट होता है. फंगस के नष्ट होने से पेड़ को पोषक तत्व मिलने लगता है और पेड़ सूखने से बच जाता है. उन्होंने कहा कि एंटीफंगल केमिकल का प्रयोग पेड़ में लक्षण दिखने पर ही करना चाहिए, लेकिन ग्रामीणों को जानकारी नहीं होने के कारण फंगस अधिकतर पेड़ों को असमय सूखा बना रहा है. ऐसे में ग्रामीणों को जागरूक करने की जरूरत है.

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