धर्म-कर्म

आज धनतेरस पर 178 साल बाद बना गुरु- शनि का दुर्लभ योग, 25 अक्तूबर को सूर्यग्रहण

त्रयोदशी तिथि 22 अक्तूबर की शाम 06 बजकर 02 मिनट पर प्रारंभ हो रही हैं और अगले दिन यानी 23 अक्तूबर की शाम 06 बजकर 03 मिनट पर खत्म हो जाएगी। भगवान धन्वंतरि का जन्म मध्यान्ह में हुआ था, इसलिए धन्वंतरि पूजन 23 को होगा। 

धनतेरस से दिवाली पर्व की शुरुआत हो जाती है। दीपावली 5 दिनों तक चलने वाला दीपोत्सव का महापर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार दिवाली कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है। इस बार दिवाली महापर्व 5 दिन के बजाय 6 दिन मनाई जाएगी और दो दिनों तक धनतेरस पर शुभ खरीदारी का संयोग बन रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार दिवाली के पहले दिन धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक त्रयोदशी तिथि पर देवताओं के वैद्य भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान स्वर्ण कलश के साथ प्रगट हुए थे। धनतेरस पर सोने-चांदी के सिक्के, आभूषण और बर्तन खरीदने की परंपरा है। धनतेरस के दिन खरीदी गई चीजें में वर्ष भर 13 गुने की वृद्धि होती है।

धनतेरस दो दिन 22 और 23 अक्तूबर को
इस बार त्रयोदशी तिथि दो दिन होने के कारण धनतेरस को लेकर ज्योतिष और पंडितों के बीच मतभेद है। त्रयोदशी तिथि 22 अक्तूबर की शाम 06 बजकर 02 मिनट पर प्रारंभ हो रही हैं और अगले दिन यानी 23 अक्तूबर की शाम 06 बजकर 03 मिनट पर खत्म हो जाएगी। भगवान धन्वंतरि का जन्म मध्यान्ह में हुआ था, इसलिए धन्वंतरि पूजन और धनतेरस की शुभ खरीदारी 22 और 23 अक्तूबर दोनों दिन की जा सकेगी।

दिवाली लक्ष्मी पूजा 23 अक्तूबर शाम 6 बजे के बाद
इस बार कार्तिक चतुर्दशी 23 अक्टूबर की शाम 5.20 से शुरू होकर 24 अक्टूबर को शाम 6 बजे तक है। इसके बाद अमावस्या शुरू होगी। यानी दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन शाम 6 बजे के बाद ही हो सकेगा। शास्त्रों में दिवाली लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में करने का विधान है। दिवाली पर शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी और भगवान गणेश के साथ भगवान कुबेर की पूजा-उपासना करने पर जीवन में सभी तरह सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है।

सूर्यग्रहण के कारण गोवर्धन पूजा 25 अक्तूबर को
इस बार दिवाली के फौरन बाद यानी 25 अक्तूबर को सूर्यग्रहण है। सूर्य ग्रहण में सूतक काल 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है। इस कारण से गोवर्धन पूजा 26 अक्तूबर को मनाया जाएगा।

भाईदूज 27 अक्तूबर को
27 अक्टूबर को भाईदूज मनाई जाएगी। भाई दूज पर बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं। मान्यता है भाई दूज पर यमराज अपनी बहन यमुना के घर पर आकर भोजन किया था और बहन ने तिलक करके आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस तरह दीपावली के पंच पर्व धनतेरस, रूप चतुर्दशी, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा और भाई दूज 6 दिन में पूरे होंगे।

धनतेरस पर 178 साल गुरु और शनि का अद्भुत संयोग
इस बार धनतेरस पर ग्रहों की ऐसी स्थिति बन हुई है जो आज से लगभग 178 साल बाद धनतेरस बनी थी। धनतेसर पर धन के कारक गुरु और न्याय व स्थायित्य के कारक शनि स्वयं की राशि में मौजूद रहेंगे। गुरु अपनी स्वयं की राशि मीन में और शनि मकर राशि में मौजूद रहेंगे। इस बार धनतेरस पर त्रिपुष्कर और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। पंचाग के अनुसार अनुसार त्रिपुष्कर योग में शुभ कार्य करने पर उसमें तीन गुने की सफलता हासिल होती है जबकि सर्वार्थ सिद्धि योग को शुभ माना गया है क्योंकि इसमें सभी सिद्धियों का वास होता है। सर्वार्थ सिद्धि योग पर राहुकाल का भी असर नहीं होता और खरीदारी करना शुभ फल देने वाला होता है।सर्वार्थ सिद्धि योग 23 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 32 मिनट से आरंभ होगा और दोपहर 2 बजकर 33 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। वहीं त्रिपुष्कर योग दोपहर 01 बजकर 50 मिनट से शाम 06 बजकर 02 मिनट तक रहेगा।

  • धनतेरस की रात इन जगहों पर जलाएं दीपक, धन देवता कुबेर और मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न
  • मान्यता है कि धनत्रयोदशी के दिन ही समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी और कुबेर के साथ स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि भी प्रकट हुए थे। इसी कारण से धनतेरस मनाया जाता है। धनतेरस के दिन जो भी व्यक्ति कुछ विशेष स्थान पर दीया जलाते हैं उनको सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

हिंदू धर्म में धनतेरस का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस में देवी लक्ष्मी की पूजा करने से घर में धन, सुख और समृद्धि आती है। इस दिन धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती है। धनतेरस हर साल कार्तिक मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस से कई किवदंतियां जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि धनत्रयोदशी के दिन ही समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी और कुबेर के साथ स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि भी प्रकट हुए थे। इसी कारण से धनतेरस मनाया जाता है। धनतेरस के दिन जो भी व्यक्ति कुछ विशेष स्थान पर दीया जलाते हैं उनको सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं कौन से हैं वो स्थान। 
धनतेरस पर इन स्थानों पर लगाएं दीपक 

  • धनतेरस का पर्व सुख-समृद्धि का पर्व माना जाता है। इस दिन पूजा कक्ष में दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन मंदिर में दीपक जलाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर में आर्थिक समृद्धि आती है।
  • धनतेरस की रात श्मशान घाट पर दीपक जलाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा से जीवन में धन की वृद्धि होती है।
  • धनतेरस की रात्रि में कुबेर और तुला का पूजन करके पूजा स्थान में रातभर जलने वाला अखंड दीपक प्रज्वलित करें।
  • घर की तिजोरी, दुकान का गल्ला,  ऐसे स्थानों पर दीपक लगाना चाहिए।
  • धनतेरस की रात्रि में कुएं की पाल पर आटे के सात दीपक बनाकर प्रज्वलित करने से कुबेर और विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
  • पीपल के वृक्ष के नीचे आटे के 11 दीपक बनाकर तेल भरकर प्रज्वलित कर वहीं बैठकर श्रीसूक्त, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करने से विष्णु-लक्ष्मी के साथ कुबेर की कृपा भी प्राप्त होती है।
  • तुलसी, शमी, बरगद-नीम-पीपल की त्रिवेणी में दीपक लगाएं।

धनतेरस पर लक्ष्मी-गणेश ही नहीं, इन देवताओं का भी होता है पूजन

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। धनतेरस या धनत्रयोदशी से हई दीपावली का 5 दिन का महापर्व आरंभ हो जाता है। धनतेरस के दिन लोग शगुन के तौर पर सोना-चांदीके बर्तन या आभूषण खरीदते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार धनतेरस के दिन हई वैद्य धन्वंतरि समुद्र मंथन से हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। पुराणों के अनुसार भगवान धन्वंतरि देवी लक्ष्मी के हाथ में अमृत कलश लिए हुए समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे। इसलिए इसे धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यही कारण है दीपावली के पहले, यानी धनतेरस से ही दिवाली का आरंभ हो जाता है। धनतेरस के दिन श्री गणेश, धन के देवता कुबेर, औषधि के देवता धन्वंतरि तथा सुख, समृद्धि तथा वैभव की देवी महालक्ष्मी की पूजा विधि विधान से एक साथ की जाती है। आइए जानते हैं कि धनतेरस पर गणेश-लक्ष्मी के अलावा और किन देवताओं का पूजन विधि और पूजन मंत्र क्या है।

गणेश पूजा से करें आरंभ 
श्री गणेश सबके आराध्य माने जाते हैं , इसीलिए सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। धनतेरस पर श्री गणेश की पूजन विधि इस प्रकार है- 

  • सर्वप्रथम श्री गणेश को स्नान कराएं। 
  • इसके उपरांत विघ्नहर्ता श्री गणेश को चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं। 
  • फिर उन्हें लाल रंग के वस्त्र पहनाएं और फिर ताजे पुष्प अर्पण करें। 

अब धनतेरस की पूजा शुरू करने से पूर्व नीचे दिए गए मंत्र का जाप अवश्य करें-
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

अब करें धन्वंतरि देव का पूजन 
श्री गणेश के पूजन के बाद भगवान धन्वंतरि का पूजन आरंभ करें। इनका पूजन इस प्रकार करें- 

  • सर्वप्रथम भगवान धन्वंतरि की मूर्ति स्थापित कर उन्हें स्नान कराएं। 
  • अब धन्वंतरि देव का अभिषेक करें। 
  • इसके बाद उन्हें 9 प्रकार के अनाज का भोग लगाएं। 
  • मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई और पीली चीज प्रिय है, तो संभव हो तो उन्हें पीले रंग की वस्तुएं ही अर्पित करें। 

अब अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य और भलाई के लिए प्रार्थना करते हुए  इस  मंत्र का जाप करें-
ॐ नमो भगवते महा सुदर्शनाया वासुदेवाय धन्वन्तरये
अमृत कलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय
त्रैलोक्य पतये, त्रैलोक्य निधये
श्री महा विष्णु स्वरूप, श्री धन्वंतरि  स्वरुप
श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा

ऐसे करें धन देवता कुबेर का पूजन 
भगवान कुबेर धन के अधिपति हैं। मान्यता है जो भी व्यक्ति पूरे विधि विधान से भगवान कुबेर की पूजा करता है उसके घर में कभी धन संपत्ति की कमी नहीं रहती है। कुबेर देव की पूजा के समय सदैव इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उनकी पूजा प्रदोष काल में ही करें।  

  • सर्वप्रथम कुबेर देव कि मूर्ति स्थापित कर उन्हें स्नान कराएं। 
  • इसके उपरांत उन्हें  फूल, फल, चावल, रोली-चंदन, अर्पित करें। 
  • इसके बाद धूप-दीप का उपयोग कर उनका पूजन करें। 
  • भगवान कुबेर को सफेद मिठाई का भोग लगाएं।

धन देवता कुबेर के पूजन के दौरान इस मंत्र का जाप करें-
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।

महालक्ष्मी पूजन के बिना अधूरी है धनतेरस की पूजा
महालक्ष्मी का पूजन धनतेरस के दिन प्रदोष काल में ही किया जाता है। पूजन विधि इस प्रकार है-

  • माता लक्ष्मी की पूजा शुरू करने से पूर्व एक चौकी पर एक लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उसमें मुट्ठी भर अनाज रख लें। 
  • इसके बाद कलश में गंगाजल रखें। 
  • इसके साथ ही सुपारी, फूल, एक सिक्का और कुछ चावल के दाने और अनाज भी इस कलश के ऊपर रखें। 
  • इसके बाद  लक्ष्मी जी की प्रतिमा का पंचामृत (दूध, दही, घी, मक्खन और शहद का मिश्रण) से स्नान कराएं। 
  • फिर जल से स्नान कराकर माता लक्ष्मी को चंदन लगाएं, इत्र, सिंदूर, हल्दी, गुलाल आदि अर्पित करें। 
  • अंत में सफलता, समृद्धि, खुशी और कल्याण की कामना करें।

अब नीचे दिए गए  मंत्र का जाप करें-
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद, ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥

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