झीरम मामले में भाजपा की बेचैनी समझ से परे- कांग्रेस
तथ्यात्मक जांच का विरोध भाजपा की संलिप्तता को कर रहा इंगित?
राजनांदगांव। भारतीय राजनीति में किसी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को समाप्त करने की साजिश के चलते छ ग में कांग्रेस पार्टी की परिवर्तन यात्रा पर जिस प्रकार से 25 मई 2013 को झीरम घाटी में हमला कर नरसंहार किया गया था वह छ ग का काला अध्याय है और इस मामले पर जब भी जांच की मांग होती है तो भाजपा नेता अपना आपा खो बैठते है जबकि तत्कालीन छ ग की भाजपा सरकार को इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए स्वयं पहल करना था लेकिन उन्होंने इस मामले में मौन धारण कर इस बड़ी घटना की सच्चाई उजागर कराने में कोई सहयोग नहीं किया । आज भी छ ग सहित देश की जनता घटना की सच्चाई जानना चाहती है ।
जिला एवं शहर कांग्रेस कमेटी राजनांदगांव के अध्यक्ष द्वय पदम कोठारी एवं कुलबीर सिंह छाबड़ा ने इस मामले पर कहा कि भाजपा नेताओ के नाम नक्सली सहयोगी के रुप मे आने के बाद भाजपा सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही क्योंकि जिनके नाम आए थे वह सीधे तौर पर भाजपा से जुड़े हुए थे वह चाहे दंतेवाड़ा जिला भाजपा के उपाध्यक्ष हो, दिवंगत विधायक भीमा मंडावी के रिश्तेदार हो या भाजपा सांसद के गाड़ी में माना विमानतल पर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति हो इतने साफ प्रमाण होने के बाद भाजपा के नक्सलियों से संबंध बताने की आवश्यकता नहीं है भाजपा अपने राजनीतिक फायदे के लिए नक्सलियों के खिलाफ तेज कार्यवाही करने के बजाय ढीला कर देती थी जिसके कारण वर्ष 2008 में 12 में बस्तर से 11 सीटें भाजपा की झोली में गए थे सबसे बड़ी विडंबना यह थी की परिवर्तन यात्रा के साथ ना तो पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था थी और ना ही रोड ओपनिंग पार्टी थी जबकि सरकार के गोपनीय विभाग को लगातार क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों के बारे में जानकारी हो गई थी और उस काफिले में जेड प्लस सुरक्षा प्राप्त महेंद्र कर्मा पी सी सी चीफ नंदकुमार पटेल, वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल सहित कांग्रेस के अग्रिम पंक्ति के नेता थे उसके बाद भी प्रशासनिक लापरवाही के चलते यह सुनियोजित नक्सली नरसंहार की घटना को मिलजुल कर अंजाम दिया गया तत्कालीन भाजपा सरकार से जब जब भी सीबीआई से जांच कराने ली पहल की बात की जाती थी तो सिर्फ गोलमोल कर मामले को दबाने की साजिश की जाती थी घटना में पहले नक्सली नेता गणपति एवं रंमदा का नाम आने के बाद भी चार्जसीट से उनका नाम गायब किया जाना यह पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की ही साजिश का प्रमाण है प्रकरण के दस्तावेज छ ग राज्य सरकार को एन आई ए को जल्द सौपने चाहिए जिससे राज्य सरकार जांच जल्द करा सके।
प्रकरण के संबंध में नक्सली घटना में राजनांदगांव के पूर्व विधायक शहीद उदय मुदलियार के पुत्र जितेंद्र मुदलियार ने सीधे शब्दों में कहा कि यह नक्सली घटना नहीं नक्सल हमला के नाम पर किया गया हत्या है जिस के संबंध में मैंने जगदलपुर एस पी को आवेदन देकर दरभा थाने में 26 मई को एक हत्या का मामला दर्ज कराया है क्योंकि पूर्व में जितनी भी जांच हुई है उन जाचो में सिर्फ लीपापोती हुई है तथ्यों और सबूतों पर ध्यान नहीं दिया गया है पूरे घटना की जांच को नक्सली हमला बताने की सुनियोजित क्रियाकलाप के तहत अमलीजामा पहनाया गया है जबकि यह सीधे तौर पर नरसंहार था जिसमें मैंने अपना पिता तो खोया ही है बल्कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को समाप्त करने का खेल खेला गया था वर्ष 2016 में सीबीआई की मांग को केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया है इस बात की जानकारी पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने दो साल बाद 2018 में क्यों दी और इतने विलंब का कोई पर्याप्त कारण नहीं बताना भी अपने आप में शंका को को जन्म देता है यदि भाजपा भी इस मामले की सच्चाई सार्वजनिक कराना चाहती है तो उसे स्वयं इस मामले में पहल करना चाहिए क्योंकि कांग्रेस पार्टी इस घटना के बाद से ही इस मामले की सीबीआई/ एसआईटी जांच की मांग कर रही है और भाजपा को भी राजनीति से परे हटकर साथ देना चाहिए क्योंकि एक राजनीतिक दल के काफिले पर यह हमला हुआ था अत: इसमें कांग्रेस की मांग का समर्थन कर स्वस्थ राजनीति का प्रमाण देना चाहिए ताकि आतंकवादी या नक्सली गतिविधियां राजनीतिक दलों पर हावी ना हो सके और जन सेवा के लिए तत्पर राजनेता निर्भीक होकर कार्य कर सकें।