चुनाव जीतने का गणित: नाम, काम और दाम का चक्रव्यूह इस बार भी मारक रहेगा

यूं तो चुनाव जीतने का गणित बड़ा ही सीधा – साधा है लेकिन लोगों (जनप्रतिनिधियों, चुनाव जीतने – हारने वाले नेताओं) तथा उनके चमचों ने इस मुद्दे को इतना गूढ़ बनाकर उलझा दिया है कि अबके दौरा में (या कहें बीते कई वर्षों से) इसके लिए द्रावड़ी प्राणायाम करना पड़ता है। द्रावड़ी प्राणायाम का मतलब काफी उठा – पटक करने से है।
अब देखो न छत्तीसगढ़ में 15 वर्षो तक एकछत्र शासन करने के बावजूद वर्ष 2023 के अंत में होने वाले आम चुनाव को जीतने लिए भाजपा मंथन पर मंथन किए जा रही है। भाजपा के केन्द्र स्तर के बड़े नेता जे.पी. नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह तथा नरेन्द्र मोदी लगातार छत्तीसगढ़ का दौरा करके भाजपा नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को चुनाव जीतने का टिप्स याने मंत्रों की घुट्टी पिला रहे हैं। बूथों को मजबूत करने, पन्ना प्रभारियों को गहन दायित्व दिए जा रहे हंै।
अरे भैया, क्यों इतनी मगजमारी कर रहे हो! चुनाव जीतना और शासन करना केवल आपका हक थोड़े है। कई दूसरें भी तो हैं जो लाइन में लगे हैं। उनको भी तो शासन करने का हक है। लेकिन नहीं। अब इन्हें कौन समझाए कि भाजपा ही सही पार्टी है। भाजपा ही विकास कर सकती है। कांग्रेस ने बीते 70-75 वर्षों में क्या किया? कोई भाजपा से पूछे कि भिलाई स्टील प्लांट से लेकर भाखरा नंगल बांध, रविशंकर शुक्ल डैम, युनिवर्सिटी, महानदी जलाशय, तान्दुला और ऐसे ही अन्य बांध, विद्युत परियोजनाएं और विकास के अन्य ढेरों कार्य भाजपा ने कराए हैं, तब तो भाजपा का वजूद भी नहीं था। भाजपा को तो केवल कांग्रेस का व्यापक भ्रष्ट्राचार नजर आता है। भ्रष्ट्राचार तो है था भी और यह सर्वकालिक भी है क्या भाजपा शासन में भ्रष्ट्राचार नहीं था क्या वे दूध के धुले है? लेकिन नहीं । राजनीति तो इकतरफा सोच रखती है और खुद को पाक साफ बतलाती है। केवल मीडिया वाले और आम जनता जानती है कि सच क्या है लेकिन इस ब्रम्ह वाक्य को भाजपा और कांग्रेस दोनों बड़े फख्र से दुहराती है कि ‘‘यह जनता है जो सब कुछ जानती है। यह सच भी है कि जनता भाजपा एवं कांग्रेस दोनों का सच अर्थात भ्रष्ट्राचार को बखूबी जानती है कि सच क्या है?
इतना कुछ ‘‘लिखने का तात्पर्य केवल यह है कि जनता न केवल सबका सच जानती है अपितु केवल वह ही भुगतती है। उसे गुमराह करके, मुफ्त में खिलापिला कर और बांट करके। यह बहुत ही फायदे का धंधा है। अधिक से अधिक एक माह बांटो और साढ़े चार साल से लेकर पौने पांच साल तक माले मुफ्त दिले बेरहम खाओ ……… मौंज करो।
हमने शुरू में ही कहा है कि चुनाव जीतने का गणित बड़ा ही सीधा – साधा है। चलो अब हम इस गोपनीय मंत्र को सरेआम बता ही देते हैं जिसे नेता और लगभग सभी राजनीतिक दल भुला चुके हैं। यह मंत्र है ‘‘काम नाम और दाम का’’। बड़ा ही छोटा मंत्र है लेकिन बहुत काम का है। आप केवल काम करिए (बस यही काम कोई नहीं करता) केवल काम करिए, नाम आपको अपने आप मिलने लगेगा। और जहां आपको नाम मिलता है तो फिर समझ लो चुनाव जीतने का दाम आपको बिना किसी खरीद – फरोख्त के मुफ्त में मिल जायेगा। लेकिन क्या करें, क्या कहें, यह दुनिया बड़ी अजीब है। यहां काम और नाम को कौन पूछता है ? पूछती है तो केवल दाम को अर्थात ‘दामदार’ ही दमदार हो जाता है, वह काम और नाम का गला घोट देता है और भुगतती केवल जनता है।
अब देखिए एक चित्र – चुनाव हुआ। नेताजी ने चुनाव जीत लिया तिकड़म के तहत (दबाव में) मंत्रीमंडल में ले लिए गये। दमदार या कहें दामदार विभाग भी हथिया लिए। पांचों उंगलियां घी में। उनके सचिवों ने दामदार विभाग भी हथिया लिए। पांचों उंगलियां घी में। उनके सचिवों के भी पौ बाहर ) जिस पार्टी का शासन आया, उसके विधायकों एवं कार्यकर्ताओं के भी ‘पौ बारह’ अधिकारी से लेकर कर्मचारी। याने बाबू से लेकर पटवारी, सिपाही से लेकर चपरासी सभी जनता को विकास के सपने दिखाकर लूटने लगते हैं, याने चुनाव जिताकर मतदाता अगले चुनाव तक अपने नाम से होने वाले विकास कार्यो को लेकर भुगतती है और लूट का शिकार होते रहती है। यह नाटक अनवरत जारी है और जाने कब तक जारी रहेगा। यह है प्रजातंत्र का नाटक। वोट हमें देना है। न दें तब भी सरकार तो बनेगी ही (सैकड़ों – हजारों बुद्धिजीवी वोट नहीं देते) कुल मिलाकर हमारे सामने एक ही मजबूरी है। वह है हम अधिक भ्रष्ट के बदले ज्यादा कुछ हुआ तो कम भ्रष्ट को चुनें। याने नागनाथ को न चुनें तो सांपनाथ को हमें चुनना ही होगा।

संजय यादव

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