भीतरघात से जिसने पार पा लिया वह जीत जायेगा

राजनांदगांव। यूं तो प्रत्येक विधानसभा चुनाव में हर एक क्षेत्र में अमूमन खुलाघात कम और ज्यादातर भीतरघात होते रहा है लेकिन इस विधानसभा चुनाव में भीतरघात कुछ ज्यादा ही होगा। खासकर राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में। इस विधानसभा क्षेत्र में इसलिए क्योंकि ऐसा दूसरी बार है जबकि यहां से पैराशूट प्रत्याशी उतार कर स्थानीय नेताओं या कहें स्थानीय नेतृत्व की उपेक्षा की गई है। यह वर्षों से कांग्रेस की कमान थामकर इसके प्रचार – प्रसार में जी – जान से जुटे नेताओं के लिए कड़ा आघात है।
अब जबकि राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र से खनिज विकास निगम के अध्यक्ष एवं खरोरा निवासी गिरीश देवांगन को कांग्रेस ने जब उम्मीदवार बनाया तो एक बारगी लगा कि पार्टी में जलजला आ जायेगा क्योंकि न केवल उसके खिलाफ पूर्व महापौर नरेश डाकलिया ने चुनाव लडऩे का ऐलान करते हुए पर्चा भर दिया अपितु मलपुरी में कांग्रेस के 71 गावों के कार्यकर्ताओं ने नरेश डाकलिया का साथ देने का संकल्प लिया लेकिन डेमेज कंट्रोल का ‘प्रभावी’ दृष्टिकोंण प्रस्तुत करते हुए गिरीश ने कु.शैलजा के माध्यम से नरेश डाकलिया को मना लिया लेकिन 71 गांवों के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का क्या होगा जिन्हें मनाया नहीं गया है या कहें उन्हें चुनाव के शेष बचे अल्प समय में मनाना संभव नहीं है। यदि 71 गावों के कांग्रेस कार्यकर्ता कृत संकल्पित रहेंगे तो कांग्रेस प्रत्याशी का भ_ा बैठना सुनिश्चित है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अलावा इस बार के चुनाव में यहां से कांग्रेस के नामचीन्ह नेता हेमा – सुदेश देशमुख तथा कुलबीर छाबड़ा के अलावा ग्रामीण कांग्रेस के एक प्रमुख पदाधिकारी एवं श्री किशन खण्डेलवाल पार्टी अनुशासन के मद्देनजर कांग्रेस प्रत्याशी श्री देवांगन का साथ देने का निश्चय किया है और उन्होंने श्री देवांगन के साथ रहकर चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है लेकिन क्या उनके कट्टर समर्थक भी ऐसा कर पायेंगे? क्योंकि उनको लेकर यह विश्वास पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे कांग्रेस प्रत्याशी का साथ देंगे। सीधी सी बात है कि यदि इस बार बड़े पैमाने पर भीतरघात होता है तो इसका बड़ा फायदा भाजपा प्रत्याशी तथा तीन बार के मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह को होगा ऐसा इसलिए क्योंकि कैडरबेस पार्टी भाजपा को उसके परम्परागत वोटर्स के साथ ही ऐसा मतदाताओं का भी वोट मिलेगा जो कांग्रेस का परम्परागत वोटर्स न होने पर भी कांग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं लेकिन ये वोटर्स पूर्व में कांग्रेस के घोषणा पत्र में किए गये वायदों को पूरा न करने के कारण उसके खफा हैं। जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ लेने से वे वंचित रह गए हैं। उन्होंने आवास योजना का लाभ लेने अपना मिट्टी का मकान तुड़वा दिया है। कईयों ने पांचवां वर्ष बीतते न बीतते उधार का जुगाड़ करके मकान बनवा लिया है और अब उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। यद्यपि कांग्रेस के पुन: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने पर आवास योजना को लाभान्वित करने का भरोसा दिलाया है लेकिन जो सरकार केन्द्र से उसके हिस्से का लाभ न मिलने का बहाना बनाकर इसका लाभ नहीं दिला पाई है, ऐसी सरकार के वायदे पर अब मतदाताओं का विश्वास नहीं रह गया है।
यह तो राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र की बात है, आगे डोंगरगढ़ एवं खुज्जी में भी इसी तरह के भीतरघात की प्रबल संभावना है जहां भुवनेश्वर बघेल एवं छन्नी साहू के कट्टर समर्थक अपने नेता का टिकट कटने से नाराज हैं। हां खैरागढ़ एवं डोंगरगांव में बराबर की टक्कर है वहीं मोहला – मानपुर – चौकी में हार जीत का अंतर बहुत कम मतो से होने की संभावना है।
27 अक्टूबर का समय बीतने के साथ ही राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण अंचल में अब तक झंडा- तोरण लगने के अलावा लगभग सन्नाटा छाया हुआ है। और मतदान के लिए केवल 10-11 दिन शेष रह गए हैं। इतने अल्प समय में (डेमेज कंट्रोल की कवायद के बाद) पूरे राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र के ग्रामीण अंचल को कवर करना राष्ट्रीय स्तर के पार्टी उम्मीदवारों के लिए भी मुश्किल है। शेष नामचीन्ह पार्टीयों एवं निर्दलीय प्रत्याशियों की बात ही छोड़ दें।
इसलिए चतुर प्रत्याशी ग्रामीण क्षेत्र के बाजार वाले दिन को केन्द्र में रखकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं क्योंकि बाजार वाले दिन पांच सात गांव के मतदाता एकत्रित होते हैं। शेष गावों की जिम्मेदारी उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं के भरोसे छोड़ दी है। स्पष्ट है कि इस नीरस प्रतीत हो रहे चुनाव में घमासान के अंतिम पांच दिनों में राजनांदगांव नगर निगम क्षेत्र में मचेगा। इस दौरान मतदान के अंतिम दिन तरह – तरह के प्रलोभन भी मतदाताओं को दिये जायेंगे।