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एक्सक्लूसिवदेश

शराब फैक्टरियों से निकलने वाला अपशिष्ट पशुओं के लिए फायदेमंद

हिसार।-शराब की फैक्टरियों से निकलने वाला अपशिष्ट (डिसटिलर ड्राइड ग्रेन प्लस सोल्यूबल) दुधारू पशुओं के लिए काफी लाभदायक है। यह साबित हुआ है लाला लाजपतराय पशु विज्ञान एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में। वैज्ञानिकों के अनुसार यह वेस्ट (अपशिष्ट) प्रोटीन का अच्छा और सस्ता स्रोत है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसमें प्रोटीन की मात्रा 35 से 45 प्रतिशत तक है। बता दें कि मुर्गीपालक मुर्गियों को प्रोटीन देने के लिए सोयाबीन का इस्तेमाल करते हैं। वहीं पशुपालक अपने दुधारू पशुओं को खल (बिनौला, सरसों की खल, मूंगफली की खल) आदि खिलाते हैं। जो उन्हें महंगा पड़ता है।

यदि डिसटिलर ड्राइड ग्रेन प्लस सोल्यूबल के साथ तुलना की जाए तो इनमें प्रोटीन की मात्रा भी कम है। प्रोटीन की मात्रा डिसटिलर ड्राइड ग्रेन प्लस सोल्यूबल : 35 से 45 प्रतिशत बिनौला : 23 प्रतिशत सरसों की खल : 35 प्रतिशत वसा व फास्फोरस की मात्रा भी ज्यादा डिसटिलयर ड्राइड ग्रेन प्लस सोल्यूबल (डीडीजेएस) की बात करें तो इसमें वसा व फास्फोरस की मात्रा भी ज्यादा है। सोयाबीन मील में वसा की मात्रा एक प्रतिशत है, जबकि डीडीजेएस में वसा की मात्रा आठ प्रतिशत तक है। इसके अलावा इसमें फास्फोरस की मात्रा भी ज्यादा है। मुर्गियों को कैल्शियम के साथ-साथ फास्फोरस भी देना पड़ता है, जबकि डीडीजेएस में अलग से फास्फोरस देने की जरूरत नहीं पड़ती। फास्फोरस प्रदूषण भी फैलाता है। इस लिहाज से डीडीजेएस बायो फीड का काम भी करता है। ऐसे जरूरी है प्रोटीन व वसा दुधारू पशुओं में दूध की मात्रा व गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रोटीन युक्त आहार दिया जाता है। वहीं मुर्गीपालन में मुर्गियों का भार बढ़ाने और अंडे पैदा करने के लिए उन्हें प्रोटीन दिया जाता है। वसा से पशुओं को ऊर्जा मिलती है, जबकि फास्फोरस दूध की मात्रा बढ़ाने व पशुओं की हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करता है।

इतनी मात्रा में दें डीडीजेएस दुधारू पशुओं के सांद्र मिश्रण (फीड) में 20 प्रतिशत और मुर्गियों के फीड में 10 प्रतिशत तक डीडीजेएस डाला जा सकता है। अपशिष्ट में भरपूर प्रोटीन डॉ. सज्जन सिहाग (विभागाध्यक्ष), डॉ. जिले सिंह सिहाग और मैंने इस विषय पर शोध किया है। जिसमें निकलकर आया है कि डीडीजीएस प्रोटीन से भरपूर आहार है। चूंकि शराब बनाने वाली फैक्टरियों के लिए यह एक तरह का कचरा होता है, ऐसे में यह पशुपालकों व मुर्गीपालकों को सस्ती दरों पर उपलब्ध हो जाएगा। अगर आसपास है कोई शराब की फैक्टरी है तो यातायात का खर्च भी बचेगा। – डॉ. सुशील कुमार, वैज्ञानिक, एनीमल न्यूट्रीशन विभाग

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