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सार्वजनिक परिवहन अपनाएंगे तो साफ होगी दिल्ली की हवा

मौसमी दशाएं अनुकूल होने के बावजूद दिल्ली की आबोहवा खराब रही। साल के ज्यादातर दिनों में राजधानी की हवा मानक से खराब रहती है। इसमें वाहनों से होने वाले प्रदूषण का हिस्सा सबसे ज्यादा है। करीब 40 फीसदी प्रदूषण वाहनों से होता है। इस आंकड़े को अगर निजी और सार्वजनिक वाहनों के पैमाने पर कसा जाए तो अनुपात 20 और 80 का ठहरता है। विशेषज्ञों की इस बात में दम है कि बगैर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत किए दिल्ली को प्रदूषण की चपेट से निकाल पाना संभव नहीं है। तमाम बिंदुओं को समेटती अमर उजाला संवाददाता संतोष कुमार और सर्वेश कुमार की खास रिपोर्ट…

अलग-अलग वाहनों से होने वाला प्रदूषण

वाहन                     हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
दुपहिया                           57
निजी कार (पेट्रोल)             14
वाणिज्यिक वाहन (डीजल)  11
निजी वाहन (डीजल)          08
वाणिज्यिक कार (सीएनजी) 06
तिपहिया वाहन                 02
बसें                                  01
भारी वाहन                        01
नोट : 2010 से 2018 के दौरान दिल्ली-एनसीआर में अलग-अलग क्षेत्र से निकलने वाली पीएम-2.5 की कुल मात्रा। (आंकड़े पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की शोध रिपोर्ट से)

क्षेत्र                 2010                    2018    घटा/बढ़ा (प्रतिशत)
परिवहन         30.25                    42.23    40
उद्योग             16.29                    24.10    48
बिजली संयंत्र    2.87                      3.34    16
रिहायशी          17.40                    6.19    64
तेज हवाएं       26.2                       19.5    26
कुल                94.26                     108.017    15
नोट : 2010 व 2018 में प्रदूषण की मात्रा गीगा ग्राम प्रति वर्ष है। (आंकड़े पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की शोध रिपोर्ट से)

अलग-अलग क्षेत्र का दिल्ली के प्रदूषण में हिस्सा
वाहन    हिस्सा (प्रतिशत)
परिवहन    39.09
उद्योग    22.31
बिजली संयंत्र    3.09
रिहायशी    5.73
तेज हवाएं    18.05
अन्य    11.73
कुल    100
नोट : आंकड़े पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की शोध रिपोर्ट से।

सार्वजनिक और निजी वाहनों का अनुपात होना चाहिए निश्चित
शहर में सार्वजनिक और निजी वाहनों की संख्या का अनुपात निश्चित है। आदर्श स्थिति में 80 फीसदी सार्वजनिक और 20 प्रतिशत निजी वाहनों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसके लिए सबसे जरूरी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत करने है, जबकि दिल्ली में अभी भी यह आंकड़ा 50-50 फीसदी का है। लोगों को जागरूक कर निजी वाहनों का इस्तेमाल करने से रोकें। वहीं, लक्जरी व बड़े वाहनों पर ज्यादा टैक्स लगना चाहिए। अगर परिवार के साथ वीकेंड या किसी समारोह में जाना है तो बड़े वाहनों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन दफ्तर या अकेला सफर करते वक्त निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक वाहन या छोटे वाहनों को बढ़ावा देना पड़ेगा।

  • विवेक चट्टोपाध्याय, पर्यावरण विशेषज्ञ

चलेंगी बस से तो कम होगा प्रदूषण
ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) की शिवानी शर्मा बताती हैं कि किसी व्यक्ति के सफर से कितना प्रदूषण फैलता है, वह वाहन से तय होता है। एक व्यक्ति के बस और डीजल कार के सफर में पीएम2.5 की मात्रा में आठ गुना तक का फर्क आता है। हर किमी बस से पीएम2.5 की मात्रा .001 ग्राम और डीजल कार से .008 ग्राम रहती है। प्रदूषण मुक्त सफर साइकिल से होता है।

वाहन शिफ्ट करने से भी कम होता है प्रदूषण
दिल्ली के प्रदूषण पर हुए एक अध्ययन से जुड़े टेरी के डॉ. अनुज गोयल का कहना है कि मोटर से चलने वाले वाहनों का ट्रैफिक अगर बगैर मोटर से चलने वाले वाहनों पर शिफ्ट किया जा सका तो प्रदूषण स्तर में तेजी से गिरावट आती है। उनक अध्ययन बताता है कि दिल्ली में अगर 25 फीसदी लोग कार आदि से साइकिल, रिक्शा से चलना शुरू कर देते हैं तो पीएम2.5 में 4-5 फीसदी की कमी आती है। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर इस बदलाव से वाहनों से होने वाले प्रदूषण में से करीब 12.50 फीसदी कम होगा।

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