रायपुर के सिनेमा हॉल में फेंके जाते थे इंदिरा गांधी के खिलाफ पर्चे, जबरन की जाती थी लोगों की नसबंदी; सरकार की जांच के बाद छपते थे अखबार
आज से करीब 46 साल पहले 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया था। देश में यह आपातकाल 21 मार्च 1977 यानी 21 महीनों तक चला। यह वो दौर था, जिसमें वही होता था जो इंदिरा सरकार चाहती थी। इन दौरान न कोई विरोध कर सकता था नही उनके फैसले को बदल सकता था। उस वक्त रायपुर मध्यप्रदेश राज्य का एक छोटा सा शहर हुआ करता था। मगर इस शहर ने आपातकाल के कई काले किस्सों को अपने जहन में अभी तक समेटे रखा है।
आज हम आपको ऐसा ही एक किस्सा बताने जा रहे हैं, जो है भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सच्चिदानंद उपासने का। आपातकाल के वक्त सरकार के खिलाफ लिखने-बोलने और विरोध करने वालों में से वे एक हैं। सच्चिदानंद को उस वक्त 19 महीने तक जेल में रहना पड़ा था। सच्चिदानंद ने बताया आपातकाल के वक्त रायपुर शहर का माहौल कैसा था। पढ़िए उन्हीं के शब्दों में…
सच्चिदानंद उपासने ने बताया, ‘ हमारे पास उस दौर में टेलीविजन नहीं था, रेडियो ही खबरों का एक जरिया था। मैं आम दिनों की तरह रेडियो सुनकर अपने काम में व्यस्त था, तब मैं युगधर्म नाम के अखबार में काम करता था। रेडियो पर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है, लेकिन इससे आपको भयभीत होने की जरूरत नहीं है। ये बातें उन्होंने 26 जून सन 1975 की सुबह आकाशवाणी के प्रसारण पर कहीं थीं। शहर में इसके बाद दो से तीन दिनों तक अफरा-तफरी का माहौल था।’
उस वक्त सरकार के विरोध में इस तरह के पोस्टर लगाए जाते थे ।
सच्चिदानंद ने बताया, ‘एमजी रोड में हमने एक कमर ले रखा था। रात के वक्त यहां हम एक छोटी प्रिटिंग मशीन से पर्चा बनाते थे। इसमें इंदिरा सरकार की तानाशाही के बारे में लिखकर लोगों को जागरुक करते थे। रायपुर के अमरदीप टॉकिज, शारदा टॉकिज में रात के शो के वक्त हम बालकनी में शो देखने जाते थे और वहीं से पर्चा लोगों के बीच फेंककर भाग आते थे। इसके बाद साइकिल से शहर की बस्तियों में घरों के दरवाजे के नीचे से सरका कर पर्चा डाल देते थे। मेरे पिता और मां जन संघ से जुड़े थे। तात्यपारा स्थित मेरा घर आंदोलनकारियों का खूफिया अड्डा था। यहां कई बार पुलिस के छापे पड़े मेरे पूरे परिवार को पुलिस ने परेशान किया। हम यह सब झेलते रहे।’
उपासने ने बताया, ‘इसके बाद मैं, विरेंद्र पांडे और स्व महेंद्र फौजदार जय स्तंभ चौक पर इंदिरा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने चले गए। हम चौराहे पर खड़े होकर नारेबाजी करने लगे। “इंदिरा तेरी तानाशाही नहीं चलेगी’ का नारा लगाते हुए 19 दिसंबर 1975 से 21 मार्च 1977 तक के लिए जेल में बंद कर दिया गया। आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (MISA) कानून देश में सन 1971 में बना था। इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया। हमें भी इसी कानून के तहत देशद्रोही बताकर जेल में डाला गया। हमारी पर्चे छापने की मशीन जब्त कर ली गई। जेल में हम पर लाठी चार्ज किया गया था।’
‘जांच के बाद अखबार छपते थे, जबरन होती थी नसबंदी’
उपासने बताते हैं, ‘रायपुर में आज के कलेक्टर ऑफिस में ही कलेक्टर बैठा करते थे। वहां सेंसर ऑफिस बना था। वहां पेपर छपने से पहले संपादकीय और मुख्य खबरों को देखा जाता था। अगर इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ एक शब्द भी लिखा हो तो उसे हटवाया जाता था। प्रेस बंद करवाने की धमकी दी जाती थी। इंदिर गांधी की सरकार ने आपात काल के दौरान जन संख्या नियंत्रण के लिए लोगों की जबरदस्ती नसबंदियां कीं। रायपुर में भी लोगों को ये अन्याय सहना पड़ा। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तब देश में लगभग 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई। गलत ऑपरेशनों से दो हजार लोगों की मौत हुई थी।’
आपातकाल के वक्त इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी ही सियासत के प्रमुख चेहरे थे।
इस वजह से लगा था देश में आपातकाल
आपातकाल की जड़ें 1971 में हुए लोकसभा चुनाव से जुड़ी हुई हैं, जब इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राजनारायण को हराया था। लेकिन राजनारायण ने हार नहीं मानी और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में फैसले को चैलेंज किया। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर 6 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। कुर्सी की खातिर देश में आपातकाल लगा दिया। 18 जनवरी 1977 को इंदिरा ने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।