देश में किसी राजनीतिक दल पर सबसे बड़ा हमला था झीरम कांड, उसी पर राजनीति
छत्तीसगढ़ में बस्तर के दरभा इलाके की झीरम घाटी में आठ साल पहले नक्सलियों ने ऐसा आतंक मचाया था कि कांग्रेस के शीर्ष स्तर के नेताओं के साथ 29 लोगों ने जान गंवाई थी। देश में किसी राजनीतिक दल पर यह अपने किस्म का सबसे बड़ा हमला था। घटना के बाद तरह-तरह के सवालों के बीच न्यायिक जांच की मांग की गई।जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन हुआ, जिसने सैकड़ों चश्मदीदों के बयान कलमबंद किए। सुरक्षा व्यवस्था में चूक से लेकर साजिशों तक के आरोप सामने आए। साथ ही आयोग की जांच में विलंब को लेकर भी सवाल उठते रहे। इस पूरे घटनाक्रम के बीच नक्सलियों को भी व्यवस्था पर सवाल खड़े करने का मौका मिला और वे अपनी जनसुनवाई में झीरमकांड का उदाहरण देकर अपनी मजबूत ताकत का दावा तक करने लगे।झीरम की घटना के बाद नक्सलियों का कैडर भी बढ़ा। कम से कम बीस बार कार्यकाल बढ़ाए जाने के बाद अब वह समय आया है, जब झीरम कांड की जांच की रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी गई है। इस रिपोर्ट ने सियासी उबाल ला दिया है। भाजपा नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इस आयोग का गठन किया था।
रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपे जाने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। झीरम कांड के दौरान प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, पर वर्तमान में कांग्रेस राज्य की सत्ता पर काबिज है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक नियमों के उल्लंघन का हवाला देकर आयोग पर सवाल खड़े कर रहे हैं।फिलहाल आरोप-प्रत्यारोप के बीच इस बात को भुला दिया गया है कि ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने आठ साल पहले अपनों को खोया था। वे यह जानना चाह रहे हैं कि आखिर उनके अपनों को किस गुनाह की सजा मिली? सजा देने वाले कौन हैं और उनपर क्या कार्रवाई होगी? समय आ गया है कि राजनीति से आगे बढ़ते हुए इस बात पर विचार किया जाए कि झीरम कांड में जिन लोगों ने अपने प्राणों की आहुति दी, उन्हेंं न्याय मिल सके। मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट अधूरी होने की बात की है।
उन्होंने सवाल उठाया है कि जब आयोग सितंबर में कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहा था तो नवंबर में रिपोर्ट का सौंपा जाना उसके अधूरेपन का संकेत दे रहा है। एनआइए और एसआइटी जांच को लेकर भी विवाद है। राज्य सरकार की तरफ से लगातार केंद्रीय जांच एजेंसी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। उनका सही तरीके से जवाब मिलना चाहिए। राजनेताओं की हत्या पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।
उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्यपाल की तरफ से रिपोर्ट मिलने के बाद प्रदेश सरकार उचित निर्णय लेगी, ताकि कार्यवाही आगे बढ़ सके। पारदर्शिता का तकाजा है कि जांच आयोग की तरफ से भी स्पष्ट किया जाए कि किन वजहों से सरकार की जगह राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपने का फैसला लिया गया?