छत्तीसगढ़

बेसहारा लोगों के लिए फरिश्ता बना इंजीनियरिंग का छात्र, सौ से ज्यादा लोगों की कर चुका है मदद

भिलाई निवासी इंजीनियरिंग का छात्र अमित राज विक्षिप्त और बेसहारा लोगों के लिए फरिश्ता बन गया है. अमित सड़क से उठाकर विक्षिप्त और बेसहारा लोगों को अपने आश्रय गृह में लाता है और रहने खाने की पूरी व्यवस्था खुद करता है. अब तक अमित 100 से ज्यादा लोगों की मदद कर चुका है. अमित के आश्रम में सड़कों पर दिन बितानेवाले 31 से ज्यादा लोग रह रहे हैं. सात विक्षिप्त ठीक होकर अपने घर को लौट चुके हैं. अमित ने बताया कि चार साल पहले पहली बार एक डस्टबीन से विक्षिप्त को खाना उठाकर खाते देखा तो दिल का दर्द आंखों में उतर आया. सारी रात दिमाग में यही बात चलती रही कि उनके लिए क्या करें?

इंजीनियरिंग का छात्र बना सोशल वर्क का ‘मास्टर’

बस कुछ दोस्तों के साथ प्लानिंग की और ऐसे लोगों के लिए कुछ होटल से फूड पैकेट दान में लेने लगे. कभी उन्हें नहलाकर अच्छे कपड़े पहना देते तो कभी उनका इलाज करा देते. 2019 की 5 जनवरी की रात ने उनके जीवन में एक नया मोड ला दिया. ग्लोब चौक किनारे ठंड से अकड़कर एक बुजुर्ग की स्थिति काफी गंभीर हो चुकी थी. अस्पताल ले जाने पर भी जान नहीं बच सकी. बुजुर्ग की मौत के बाद लगा कि बेसहारा को खाना खिलाकर केवल पेट भर सकते हैं. लेकिन मौसम की मार से बचाने और देखभाल के लिए एक छत का होना भी जरुरी है. बस क्या था सांसद विजय बघेल के प्रयास से सेक्टर 3 में एक पुराना खाली पड़ा मकान मिल गया. उन्होंने और लोगों के सहयोग से रिनोवट करा एक आश्रय गृह में तब्दील कर दिया.

2020 में पांच बेसहारा बुजुर्गों और विक्षिप्तों के साथ शुरू आश्रय गृह में आज 31 लोग रहते हैं. अब तक आश्रम में 7 लोग पूरी तरह से ठीक हो कर घर वापस लौट गए हैं. 3 लोग दूसरे राज्यों के थे. ठीक होने पर भटके लोगों ने अमित को अपना नाम और घर का पता बताया. उसके बाद उनके घर वालों से अमित ने संपर्क किया और फिर उनके परिजन आश्रम से अपने साथ ले गए. जाते वक्त परिजनों ने अमित को शुभकामनाएं और आशीर्वाद दिया. आश्रम में रह रहे लोग पहले से बेहतर हो चुके हैं. बातचीत में उन्होंने कहा कि पहले हम सड़कों पर गुजारा करते थे, ना खाने का ठिकाना था और ना रहने की जगह. ऐसे में अमित ने हम लोगों को सहारा दिया और हमें अपने आश्रम लेकर आए.

विक्षिप्त और बेसहारा की बेटे की तरह करता है सेवा

आश्रम आने के बाद रहने के लिए छत मिल गया और खाने के लिए खाना भी. अमित ना होते तो हम इसी तरह भटकते रहते. आज हम अमित की वजह से सुखी जीवन जी रहे हैं. अमित ने बताया कि उनकी संस्था में हर कोई सामर्थ के अनुसार डोनेशन करता है. बड़े लोग हजारों में दान देते हैं तो कई मीडिल क्लास वाले 8 से 10 रुपए का भी दान देते हैं. उन्होंने बताया कि प्रति व्यक्ति के एक घंटे की सेवा का खर्च 8 रुपए के हिसाब से भी दान स्वीकार करते हैं ताकि लोगों को भी  संतुष्टि रहे कि एक घंटे ही सही पर उनके पैसे जरूरतमंद बुजुर्ग के लिए खर्च हुए. आश्रम में मेडिकल कैंप, दवाइयों की भी सुविधा है और विभिन्न संस्थाओं की मदद से दी जा रही है.

आश्रम में अमित सुबह बुजुर्गो को उठाने से लेकर रात को सोने तक साथ रहते हैं. जिस तरह बेटा अपने पैरेंट्स की केयर करता है ठीक उसी तरह अमित भी सभी को नहलाने, तैयार करने, दवा देने, डाइपर बदलने जैसे सारे काम खुद करते हैं. बुजुर्ग महिलाओं के लिए फिमेल स्टॉफ मदद करती है. उनके साथ चेतना, देबजानी, जोबनजीत सिंह, प्रवीण, अजय मंडल, सुशील सिंह, लक्ष्मी, संदीप गुप्ता, ऋतुपर्णा, पारूल, आयुष, प्रगति, राधेश्याम, आकाशदीप सहित 80 वॉलेंटियर एक आवाज पर मदद के लिए दौड़े चले आते हैं.

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