‘मन का केवल शांत होना ही नहीं, उसका शुद्ध होना भी जरूरी है। जरूरी है कि हमारा मन शांत हो, उससे पहले जरूरी है कि हमारा मन शुद्ध भी हो। इसीलिए कहा गया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। आदमी का मन यदि पवित्र है तो उसे गंगा तक जाने की भी जरूरत नहीं। केवल शरीर की सफाई से ही आदमी निर्मल नहीं होता, जिंदगी में उसके विचार भी पवित्र होने चाहिए। यह संदेश आउटडोर स्टेडियम में संत ललितप्रभ महाराज ने दिया।मन की शांति पाने के लिए क्या करें? इस विषय पर महाराज ने कहा कि जहर से सने हुए पात्र में यदि अमृत भी डाल दिया जाए तो वह भी जहर बन जाता है। मन लोभी, मन लालची, मन चंचल चितचोर, मन के मते ना चालिए, पलक-पलक मन होत। लोभी का वश चले तो वह पूरी दुनिया की दौलत तो क्या, पूरी दुनिया का राजा बनना पसंद करेगा। मुक्ति, आनंद और शांति का मार्ग उसी के लिए है, जो अपने मन को शांत भावों से तृप्त कर ले। दुनिया में सबसे बड़ी दौलत यदि कोई है तो वह है आदमी के मन की शांति। इसी दौलत को पाने भगवान श्रीमहावीर और गौतम बुद्ध ने राजमहलों का त्याग कर दिया था। जिसके पास ये दौलत होती है, उसे दुनिया की और किसी दौलत की जरूरत नहीं पड़ती।
इस संसार से विदा हो चुके व्यक्ति की अंतिम अरदास-उठावना या शोक सभा में लोग जाने वाले की तारीफ किया करते हैं। आखिर में उनके शब्द ये ही होते हैं कि परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। तब व्यक्ति को शांति का वास्तव में महत्व और अर्थ समझ आता है। विवेकवान-बुद्धिमान वो है जो अपने जीते-जी मन की शांति को पा लेता है।
मन की शांति का मालिक होने के लिए सबसे पहला मंत्र है- नो नेगेटिव-बी पाजिटिव। यह मंत्र अगर आपकी जिंदगी में आ गया तो फिर आपको किसी में कमजोरी या बुराई नजर नहीं आएगी। वह हमेशा सकारात्मक होकर बड़ी सोच का मालिक बना रहेगा। जिसका मन हमेशा एकांत और शांत रहता है, वही आदमी संत जीवन का मालिक बन सकता है।