प्रदेश

मुफलिसी की लाचारी…, रातभर बेटे की लाश लिए बैठी रही मां बेचारी, सुबह हो सका अंतिम संस्कार

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में उस वक्त मानवीय संवेदनाएं तार-तार हो गईं, जब एक लाचार मां अपने 22 साल के बेटे के अंतिम संस्कार के लिए रातभर शव को लेकर श्मशानघाट के बाहर बैठी रही। सुबह एक बिटिया की मदद से शव का अंतिम संस्कार हो सका। जिंदा शहर की संवेदनाएं फिर तार-तार नजर आईं। अपने 22 साल के बेटे के अंतिम संस्कार के लिए लाचार मां रातभर शव को लेकर श्मशानघाट के बाहर बैठी रही। फैक्टरी में श्रमिक राहुल की बीमारी के चलते मेरठ मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई थी। मेडिकल की एंबुलेंस शव को देर रात श्मशान घाट के बाहर छोड़कर चली गई। दिन निकला तो लोगों को पता चला। एक संस्था ने लाचार मां के बेटे का अंतिम संस्कार करवाकर मानवता का फर्ज निभाया। मूल रूप से आजमगढ़ जिले की रहने वाली शारदा अपने बेटे राहुल यादव के साथ रोजगार की तलाश में एक वर्ष पहले मुजफ्फरनगर आई थी। पति की मौत के बाद राहुल ही घर में कमाने वाला था। वह यहां एक फैक्टरी में ठेकेदार की देखरेख में मजदूरी करता था। परिवार की गुजर बसर चल रही थी। एक माह पहले राहुल अचानक बीमारी की चपेट में आ गया। जिला चिकित्सालय में उपचार के लिए मेरठ ले जाने के लिए कहा गया। राहुल एक माह तक मेरठ मेडिकल में भर्ती रहा।लंबी बीमारी के चलते रविवार शाम राहुल की मौत हो गई। लोगों के अनुसार बेटे की बीमारी में पाई-पाई को मोहताज हो चुकी शारदा के पास कफन और अंतिम संस्कार तक के पैसे नहीं बचे। मेडिकल में उसने स्वास्थ्यकर्मियों के सामने लाचारी बताई। मेरठ में स्वास्थ्यकर्मियों ने उसके बेटे का शव मुजफ्फरनगर के श्मशान घाट तक भिजवाने की बात कही। मेडिकल कॉलेज की एंबुलेंस से राहुल का शव रविवार देर रात नई मंडी श्मशान घाट भिजवाया तब तक श्मशान घाट के दरवाजे बंद हो चुके थे। यहां लोगों की आवाजाही नहीं थी।शारदा बेटे राहुल के अंतिम संस्कार के इंतजार में पूरी रात श्मशान घाट के बाहर ही बैठी रही। सुबह जब लोगों ने महिला और उसके साथ शव देखा तो कारण पूछा। महिला ने अपनी लाचारी और आर्थिक तंगी लोगों के सामने रखी। सूचना पर साक्षी वेलफेयर ट्रस्ट की अध्यक्ष शालू सैनी श्मशान घाट पहुंची और राहुल का अंतिम संस्कार कराकर मानवता का फर्ज निभाया। शालू सैनी ने बताया कि मां पूरी रात बेबसी में इसलिए श्मशान घाट के बाहर बैठी रही की कोई उसके बेटे का अंतिम संस्कार कर दे। अब तक सैकड़ों अंतिम संस्कार कर चुकी है शालू
शहर की रहने वाली शालू सैनी उन गरीब, लाचार और बेसहारा लोगों का सहारा बनी है जिनके पास अंतिम संस्कार का पैसा नहीं होता। बीते एक दस दिन में वह ऐसे सात लोगों का अंतिम संस्कार कर चुकी है।

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