खैरागढ़ विधानसभा चुनाव में राजफैमिली कहीं नजर नहीं आ रही,16 में से 10 बार राजपरिवार ने जीत का परचम लहराया
राजपरिवार की परंपरागत सीट माने जाने वाली खैरागढ़ विधानसभा के इस बार के चुनाव में राजफैमिली कहीं नजर नहीं आ रही। खैरागढ़ में 1957 से 2018 तक हुए 16 में से 10 बार के चुनाव में राजपरिवार ने जीत का परचम लहराया है। लेकिन इस बार राजपरिवार से कोई भी प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं है।
दिवंगत विधायक देवव्रत सिंह के बहनोई नरेंद्र सोनी को जकांछ (जे) ने जरूर मैदान में उतारा है लेकिन वे राजघराने से संबंध नहीं रखते। इतना ही नहीं देवव्रत के बाद उनकी विरासत संभालने का दावा करने वाली तलाकशुदा पत्नी पद्मा सिंह व दूसरी पत्नी विभा सिंह भी अब तक चुनावी परिदृश्य से बाहर ही हैं। टिकट की घोषणा के पहले तक दावेदारी पेश करने वाली दोनों महिलाएं फिलहाल राजनीति की बिसात से भी पूरी तरह दूर हैं।
खैरागढ़ क्षेत्र से सबसे ज्यादा चार-चार बाज रश्मिदेवी सिंह व देवव्त सिंह विधायक रहे हैं। इनके अलावा राजपरिवार से लाल ज्ञानेंद्र सिंह व वीरेंद्र बहादूर सिंह ने भी खैरागढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया है। अन्य :चुनावों में दो बार कोमल जंघेल के अलावा गैर-राजपरिवार से ऋतुपर्ण किशोरदास, विजयलाल ओसवाल, माणिकलाल गुप्ता व गिरवर जंघेल ने विधायकी पायी है। दो बार दूसरे दलों ने मारी है बाजी ज्ञ खैरागढ़ में वैसे तो 16 में से 13 बार कांग्रेस व दो बार भाजपा ने जीत का परचम लहराया है, लेकिन दो बार ऐसा भी हुआ कि अन्य दलों ने भीबाजी मारी है।
पहला उलटफेर मानिकलाल गुप्ता ने 1977 में इंदिरा विरोधी लहर के समय किया था। तब उन्होंने कांग्रेस के शिवेंद्र बहादूर सिंह को मात दी थी। इसी तरह का कारनामा बीते आम चुनाव में देवव्रत सिंह ने कर दिखाया था।
जकांछ (जे) से मैदान में उतरे देवव्रत ने भाजपा के कोमल जंघेल को हराया था। इस चुनाव में तो कांग्रेस तीसरे क्रम पर थी। खास बात यह भी रही है कि छह चुनावों में दूसरे क्रम पर जनसंघ व निर्दलीय प्रत्याशी रहे हैं।