प्रदेशराजनांदगांव जिला

मई दिवस पर…….. कैसे मने मई दिवस–करने के लिए काम नहीं, और खाने के लिए राशन नहीं

डॉ. सूर्यकान्त मिश्रा

इस सदी का ” काला दिवस ” बन गया मजदूर दिवस………
वैश्विक जान लेवा बीमारी कोरोना ने हर तरह से समाज के सभी वर्ग को नकारात्मक रूप से हताशा के दौर में ला खड़ा किया है । कोरोना नामक वायरस ने गरीबों के पर्व को उन्हीं के द्वारा निर्मित ईंट- गारे सहित बड़े- बड़े भवनों के भीतर ग्रहण की स्थिति में ला दिया है । आज जब हम याद करते हैं मई दिवस की और उत्साह पूर्वक श्रमिकों के चेहरों पर मुस्कान की झलक पाने की तो हमारी यादें कहीं अंधेरों में खो जाती हैं । मई दिवस का पर्व मनाने दी जाने वाली छुट्टी का उत्साह भी मजदूर वर्ग में दिखायी नहीं पड़ता । लगभग डेढ़ माह से काम बन्द होने के कारण अब मजदूर वर्ग ईश्वर से यही प्रार्थना कर रहा है कि किसी भी तरह उनकी रोजी- रोटी का मार्ग खुल सके ।आज हर मजदूर के माथे पर चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी और पढ़ी जा सकती हैं । किसी परिवार की बेटी के हाथ पीले होते – होते रह गए , तो कहीं बूढ़े माता- पिता के इलाज की चिंता ने परेशानी को और बढ़ा दिया है । रोज कमाने और खाने तथा परिवार का भरण – पोषण करने वाले मज़दूर जो अपने घरों से हजारों मील दूर कोरोना लॉक डाउन में फंसे हुए हैं । शायद वे पूरी तरह भूल चुके हैं कि उनकी मेहनत और उत्साह को चौगुना करने वाला उनका अपना पर्व एक मई को मनाया जाना है । मैं आज उन मजदूरों की तलाश में भटक रहा हूँ जो बड़े गर्व से कहा करते थे–
” मैं मजदूर हूँ, मजबूर नहीं , यह कहने में
मुझे शर्म नहीं,
अपने पसीने की खाता हूँ, मैं मिट्टी को
सोना बनाता हूँ ।।”
कोरोना लॉक डाउन के कारण जहाँ सब कुछ थम सा गया है , वहीं व्यापारी से लेकर श्रमिक तक का काम – धंधा चौपट हो गया है । इस वैश्विक महामारी ने सबसे अधिक दिहाड़ी मजदूरों को अपनी चपेट में लिया है । यह समाज का ऐसा वर्ग है जो साल के 365 दिन – ” रोज कमाओ ,रोज खाओ ” की तर्ज पर अपनी जिंदगी जी रहा है । जमा पूंजी के नाम पर इनके पास केवल इनका हौसला ही है, जिसे कोरोना ने पूरी तरह निगल लिया है । दो वक्त का भोजन तो दूर , बच्चों का ” खई – खजाना ” भी सपना हो गया है । अप्रैल का महीना समाप्त होते- होते भी गेहूँ की कटाई का काम रफ्तार से शुरू नहीं हो पाया है । प्रतिवर्ष इन दिनों हम दूर प्रदेशों से आये उन मजदूरों को भी देखा करते थे जो बड़े- बड़े हार्वेस्टर वाहनों को लेकर अलग- अलग क्षेत्रों में गेहूँ की कटाई करने पहुँचते थे और अपनी कमायी का रंगीन सपना परिजनों के बीच छोड़ आया करते थे । आज उन मजदूरों के माथों पर भी केवल पसीना ही दिखायी पड़ रहा है । वर्ष भर अपनी आय का सपना सँजोने वाले ऐसे श्रमिकों की मेहनत पर भी कोरोना ने पानी फेर दिया है । ऐसे लोग अपनी जमा पूँजी को खर्च करते हुए जैसे- तैसे अपने घर लौट रहे हैं । देश की सरकारें हमेशा से पलायन और बेरोजगारी के आँकड़े छिपाती आ रही हैं , किन्तु आज कोरोना ने सभी की पोल खोलकर रख दी है । देश के हर कोने में मजदूर ही मजदूर नजर आ रहे हैं । देखने वाली बात यह है कि सरकार इन बेबस मजदूरों के ” मई दिवस पर्व ” को किस तरह उत्साहवर्धक बनाती है ।
” मई दिवस पर्व ” पर भुखमरी के कगार पर खड़े मजदूरों की चिंता किस तरह की जाएगी यह बड़ा सवाल है । ” जहाँ हैं, वहीं रहें ।” वाले सरकार के हौसले भरे शब्दों ने उम्मीद तो बंधाई थी किन्तु डेढ़ माह बीत जाने पर शायद सरकार की उक्त प्रतिज्ञा पर जंग लग चुका है । आज मजदूर के पास खाने को कुछ नहीं है । बच्चों के दूध की बात तो दूर उन्हें बिस्कुट और चना- मुर्रा जैसी चीजें भी नसीब नहीं हो पा रही हैं । सरकार ने उन वर्गों के लिए तो फरमान जारी कर दिया जो फैक्ट्री तथा ऐसे ही स्थानों पर कार्यरत हैं उनका वेतन न काटा जाए । क्या उन मजदूरों की चिंता भी की गई हैं जो भवन निर्माण कार्य में ठेकेदार अथवा बिल्डर्स के आधीन काम कर रहे हैं । यहाँ तो सीधा- सीधा नियम है – काम करो और मजदूरी लो, काम नहीं तो मजदूरी नहीं ! चौक – चौराहों पर खड़े होकर आठ घंटे के काम की तलाश कर रहे मज़दूर भी इसी वर्ग में शामिल हैं । मई दिवस और मजदूर वर्ग के एक दिन के आयोजन हेतु सरकार को कुछ ऐसा करने की योजना भी बनानी थी कि हर मजदूर अपने घर पर स- परिवार एक दिन “खीर – पूड़ी ” का सेवन कर सके । शायद मैं बहुत ज्यादा भावुकता में बह गया हूँ । जहाँ सरकार आम जनता से कोरोना की लड़ायी हेतु झोली फैलाए खड़ी है , वहाँ इस तरह की आस लगाना शायद अकिंचन से याचना करने से कम नहीं है । जिन सरकारों के पास आपदा नियंत्रण फण्ड करोड़ों – अरबों में होता है ,उन सरकारों द्वारा 15 दिन भी व्यवस्था न कर पाना और झोली फैलाकर सहायता माँगना देश की राजनैतिक भ्रष्टता का ही प्रतीक है ।
वैश्विक आपदा कोरोना के चलते अब मेहनतकश लोगों के लिए यह दौर परेशानी का सबसे बड़ा सबब बन चुका है । सबसे बड़ी आफत दिहाड़ी मजदूरी करने वालों पर टूट पड़ी है । यदि फिर लॉक डाउन का विस्तार होता है ,जो शायद अवश्यम्भावी है , तो दिक्कतों में इजाफा होना भी तय है ।फैक्ट्रीयां बन्द हैं । बाजारों में सन्नाटा है । उत्पादन प्रक्रिया में जंग लग चुका है और सारे छोटे- मोटे निर्माण कार्य भी रोक दिए गए हैं । ऐसे में न तो मजदूरों को मजदूरी मिल पाएगी और न ही वे काम पर लौट पाएंगे । तब सरकार किस तरह की योजना से देश के 40 करोड़ मजदूरों को राहत दे पाएगी ? यह चिंतनीय है । देश में अभी कोरोना वायरस के चलते उत्पन्न अर्थ व्यवस्था की समस्या और विकट होने की संभावना है । संयुक्त राष्ट्र की अंतरराष्ट्रीय संस्था श्रम संगठन के एक अनुमान के अनुसार सन 2020 की दूसरी तिमाही में 19 करोड़ लोगों की फुल टाइम नौकरियाँ वैश्विक तौर पर जा सकती हैं । इसे हम द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उत्पन्न सबसे बड़ी मुसीबत मान सकते हैं । हम जिस तबाही का अनुमान लगा रहे हैं उससे बचने अथवा संकट का सामना करने -” मजदूर और मालिक ” के साथ ही देश के नीति- नियंताओं को मिलकर सामाजिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए योजना बनाने की जरूरत है । हमारे मजदूर जो आज सबसे ज्यादा प्रभावित गेन ,उनके लिए मैं यही कह सकता हूँ —
” ये बात जमाना याद रखे, विवश हैं हम
लाचार नहीं,
ये भूख,गरीबी ,बदहाली ,हरगिज हमें
मंजूर नहीं ।।”
गाँवों का देश कहे जाने वाले भारतवर्ष के छोटे – छोटे गाँवों से महानगरों में रोजी – रोटी कमाने गए मजदूरों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वैश्विक आपदा के कारण उन्हें दाने- दाने के लिए मोहताज होना पड़ेगा । आज स्थिति यह है कि – ” करने के लिए काम नहीं, खाने के लिए राशन नही और जेब में पैसे नहीं ।” घर लौटना है पर रास्तों पर खाकी का पहरा है । अपनों से मिलने की चाह में स्त्री- पुरुष सहित दूध- मुंहे बच्चे सरकारी सहायता की ओर फटी आँखों से निहार रहे हैं । मजदूर वर्ग की आँखों में बेबसी के आँसू हैं । उदास चेहरे मानो सवाल कर रहे है कि जिंदगी ऐसी है ,तो क्यों है ? स्थिति बद से बदतर हो चली है । न तो शहर में रहने लायक छोड़ा है और न ही अपने घर लौटने लायक ! इन सारी कठिन परिस्थितियों में कौन और कैसे पर्व की याद कर सकता है ।जहाँ तक मेरी सोचने की शक्ति है यह ” मई दिवस ” इतिहास में काले दिवस के रूप में दर्ज होने जा रहा है । मजदूरों का भी कुछ ऐसा ही कहना है कि ” ” ” शहर में हम टूट चुके हैं , और गाँव में हमारे सपने टूट रहे हैं ।”

डॉ. सूर्यकान्त मिश्रा
(चंद्राश्रय कुंज)
न्यू खंडेलवाल कॉलोनी,ममता नगर
प्रिंसेस प्लैटिनम, हाउस नंबर 05
राजनांदगाँव (छ. ग.)

                    
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